राजधानी रायपुर में शिक्षकों का ऐतिहासिक प्रदर्शन, 31 मई से अनिश्चितकालीन हड़ताल का ऐलान
विसंगतियों के खिलाफ होगा उग्र प्रदर्शन, सरकार से वार्ता विफल
“अब आर-पार की लड़ाई”
रायपुर से विशेष रिपोर्ट : राजधानी रायपुर में 28 मई को एक ऐतिहासिक क्षण देखने को मिला जब प्रदेश भर से हजारों शिक्षक अपनी चार सूत्रीय मांगों को लेकर एकजुट होकर तूता मैदान में इकट्ठा हुए। यह भीड़ महज एक विरोध नहीं, बल्कि शिक्षकों के आक्रोश और शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त विसंगतियों के खिलाफ एक निर्णायक आवाज बनकर उभरी।
मूल मांगें और आक्रोश की जड़ें
धरने का मुख्य कारण राज्य सरकार द्वारा बिना किसी संवाद के लागू किया गया युक्तिकरण है, जिसमें:
◆ हजारों स्कूलों को बंद करने और मर्ज करने की योजना,
◆ 50,000 से अधिक शिक्षकीय पदों की समाप्ति,
◆ प्रथम नियुक्ति तिथि से सेवा गणना के आधार पर पुरानी पेंशन की बहाली,
◆ क्रमोन्नत वेतनमान में एरियर्स की मांग,
◆ व्याख्याता व प्राचार्य पदों में बीएड की अनिवार्यता खत्म करने की मांग शामिल है।
प्रदेश संचालक मनीष मिश्रा, केदार जैन और जाकेश साहू ने कहा कि यह केवल शिक्षकों का आंदोलन नहीं, बल्कि प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था को बचाने की अंतिम कोशिश है।
धरना से मंत्रालय तक टकराव की तस्वीर
धरना स्थल से मंत्रालय घेराव के लिए जैसे ही शिक्षकों की विशाल रैली आगे बढ़ी, पुलिस प्रशासन सकते में आ गया। पहले बेरिकेड को तोड़ते हुए शिक्षक रेलवे ओवरब्रिज तक पहुंच गए, जहां टीन का मजबूत अवरोध लगाकर उन्हें रोका गया। इस दौरान शिक्षकों का आक्रोश अपने चरम पर था।

राज्य सरकार ने तात्कालिक रूप से शिक्षक साझा मंच के प्रतिनिधिमंडल को वार्ता के लिए बुलाया, लेकिन बातचीत किसी समाधान तक नहीं पहुंच सकी।
31 मई से आरंभ होगा आंदोलन का नया अध्याय
वार्ता विफल होने के बाद शिक्षक नेताओं ने साफ कर दिया कि अब आंदोलन थमेगा नहीं। दो दिन की चेतावनी के बाद 31 मई से अनिश्चितकालीन हड़ताल की घोषणा कर दी गई है।
आंदोलन अब संभागवार क्रमिक हड़ताल के रूप में आगे बढ़ेगा। सरकार के फैसलों के खिलाफ गांव-गांव जनजागरण अभियान चलाया जाएगा। 16 जून से ‘शाला प्रवेश उत्सव’ का बहिष्कार कर प्रदेशव्यापी हड़ताल को जनांदोलन का रूप दिया जाएगा।

शिक्षक साझा मंच के संचालकों – संजय शर्मा, वीरेन्द्र दुबे, विकास राजपूत, कृष्णकुमार नवरंग, राजनारायण द्विवेदी, शंकर साहू और अन्य ने आरोप लगाया कि सरकार शिक्षा के निजीकरण की दिशा में षड्यंत्रपूर्वक काम कर रही है, जिसे किसी भी कीमत पर सफल नहीं होने दिया जाएगा।
शिक्षकों के इस जनांदोलन ने सरकार को स्पष्ट संकेत दे दिया है कि अब शिक्षकों की उपेक्षा या मांगों की अनदेखी आसान नहीं होगी। यह आंदोलन न केवल शिक्षा व्यवस्था की रक्षा के लिए है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य के लिए भी एक निर्णायक मोड़ बन सकता है।