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जांच की जगह जाम! आरा मील में कार्रवाई करने पहुँची वन विभाग की टीम शराब के नशे में चूर…

डॉक्टरी रिपोर्ट में खुलासा, बोतलें छुपाते कैमरे में कैद हुए अफसर!

जांच की जगह जाम! आरा मील में कार्रवाई करने पहुँची वन विभाग की टीम शराब के नशे में चूर…

डॉक्टरी रिपोर्ट में खुलासा, बोतलें छुपाते कैमरे में कैद हुए अफसर!

सरकारी गाड़ी से पहुँचे थे शराब पार्टी मनाने… प्रतिबंधित अर्जुन लकड़ी से भरा पड़ा आरा मील, कार्रवाई शून्य!

जांजगीर-चांपा। जहाँ एक ओर पूरा देश “एक पेड़ माँ के नाम” जैसे पर्यावरणीय अभियान से हरे-भरे भविष्य की ओर कदम बढ़ा रहा है, वहीं दूसरी ओर वन विभाग के जिम्मेदार कर्मचारी ही पेड़ों की रक्षा के बजाय शराब पार्टी में मशगूल नजर आ रहे हैं। मामला जिले के बम्हनीडीह ब्लॉक अंतर्गत खपरीडीह गांव का है, जहाँ प्रतिबंधित अर्जुन पेड़ों की लकड़ी से लबालब भरे आरा मील की जांच करने पहुँची वन विभाग की टीम कार्रवाई की बजाय शराब के जाम छलकाते पकड़ी गई।

कैमरे में कैद हुए शराबी अफसर, बोतलें और चखना लेकर बैठे थे रूम में!

स्थानीय लोगों को जब टीम के रुकने की भनक लगी और वे आरा मील पहुंचे तो देखा कि वन विभाग के अधिकारी मील संचालक के रूम में बैठकर शराब का सेवन कर रहे हैं। लोगों ने जब वीडियो बनाना शुरू किया तो बोतलें और ग्लास छिपाने की होड़ मच गई। यही नहीं, मौके पर चखना की बाकायदा व्यवस्था की गई थी और सरकारी वाहन से पहुँची टीम का स्वागत शराब पार्टी से किया गया।

डॉक्टरी परीक्षण में पुष्टि, वन अमले ने पी थी शराब!

बवाल बढ़ने के बाद पूरे मामले की जांच के आदेश दिए गए और टीम के सभी सदस्यों को डॉक्टरी परीक्षण के लिए भेजा गया। मेडिकल रिपोर्ट में शराब सेवन की पुष्टि हुई है। डीएफओ हिमांशु डोंगरे ने मामले को गंभीरता से लेते हुए दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की बात कही है।

जहाँ कार्रवाई होनी चाहिए थी, वहीं संरक्षण हो रहा अपराध का…

गौरतलब है कि खपरीडीह क्षेत्र में इन दिनों अर्जुन जैसे प्रतिबंधित पेड़ों की अवैध कटाई तेजी से हो रही है। लेकिन आश्चर्य की बात ये है कि आरा मील में भारी मात्रा में अर्जुन की लकड़ी होने के बावजूद वन विभाग की टीम ने कोई कार्रवाई नहीं की। बल्कि वहीँ बैठकर शराब पीती नजर आई।

मील संचालक की चुप्पी भी संदेहास्पद

जब मील संचालक सुंदर पटेल से पूछा गया तो उन्होंने स्वीकार किया कि वन विभाग की टीम आई थी और उनके कहने पर नाश्ते की व्यवस्था की गई थी। हालांकि उन्होंने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि शराब कौन लाया, इसकी जानकारी नहीं है।

अब सवाल ये उठता है –

क्या वन विभाग और आरा मील संचालकों की साठगांठ से चल रहा है प्रतिबंधित लकड़ियों का कारोबार?

सरकारी अमला जब संरक्षणकर्ता की भूमिका में अपराधियों का सहभागी बन जाए, तो फिर आम जनता क्या उम्मीद करे?

अब देखना यह होगा कि डीएफओ द्वारा की जा रही कार्रवाई महज औपचारिकता साबित होती है या इस बार कोई बड़ी मिसाल कायम होती है।
इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर से प्रशासनिक लापरवाही और भ्रष्ट व्यवस्था की पोल खोल दी है।

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