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सच्चाई की कीमत: पितईबंद में अवैध रेत घाट की पोल खोलने पहुंचे पत्रकारों पर जानलेवा हमला

खनन माफिया का राज या शासन का मूक तमाशा?, प्रशासन सवालों के घेरे में

सच्चाई की कीमत: पितईबंद में अवैध रेत घाट की पोल खोलने पहुंचे पत्रकारों पर जानलेवा हमला

खनन माफिया का राज या शासन का मूक तमाशा?, प्रशासन सवालों के घेरे में

 

गरियाबंद : पितईबंद क्षेत्र में संचालित एक अवैध रेत घाट पर खबर बनाने पहुंचे पत्रकारों की टीम पर रविवार देर शाम जानलेवा हमला किया गया। यह हमला उस वक्त हुआ जब स्थानीय मीडिया टीम अवैध खनन गतिविधियों का स्टिंग ऑपरेशन कर रही थी। इस हमले ने शासन और प्रशासन की संवेदनशीलता तथा तत्परता पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं।

माफिया राज का खुला खेल

मिली जानकारी के अनुसार, पितईबंद के इस अवैध रेत घाट का संचालन रेत माफियाओं द्वारा किया जा रहा है, जो न केवल प्रशासन की आंखों में धूल झोंकते आ रहे हैं, बल्कि अब मीडिया की आवाज को भी दबाने पर उतारू हो गए हैं। घाट संचालकों ने अपने गुर्गों को बंदूकों से लैस कर वहां तैनात कर रखा था। जैसे ही पत्रकारों ने खनन की रिकॉर्डिंग शुरू की, उन पर हथियारबंद गुर्गों ने जानलेवा हमला कर दिया।

पत्रकार संगठनों में आक्रोश

इस घटना के बाद जिला भर के पत्रकार संगठनों में भारी आक्रोश देखा गया। पत्रकारों ने इसे लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर सीधा हमला बताते हुए जिला प्रशासन की निष्क्रियता को जिम्मेदार ठहराया है। संगठनों ने आरोप लगाया कि प्रशासनिक संरक्षण के बिना इतने बड़े पैमाने पर अवैध खनन और इस तरह की हिंसक घटनाएं मुमकिन नहीं हैं।

प्रशासन की भूमिका पर सवाल

घटना के बाद जिले के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी मौके पर पहुंचे और प्रारंभिक जांच शुरू की गई है। हालांकि, यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि यदि पत्रकारों की सुरक्षा भी इस राज्य में सुनिश्चित नहीं है, तो आम जनता कैसे सुरक्षित महसूस कर सकती है? अवैध खनन, हथियारबंद माफिया और पत्रकारों पर हमला – यह सब कुछ शासन की कमजोरियों को उजागर करता है।

शांति का दावा, लेकिन डर कायम

फिलहाल प्रशासन का कहना है कि स्थिति नियंत्रण में है और इलाके में शांति बहाल कर दी गई है। लेकिन घटनास्थल के आस-पास दहशत का माहौल बना हुआ है। हमलावरों की गिरफ्तारी और अवैध रेत घाट के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर जनसंगठनों और पत्रकार समूहों ने आंदोलन की चेतावनी दी है।

क्या लोकतंत्र की आवाज को यूं ही कुचला जाएगा?
क्या रेत माफिया कानून से ऊपर हो गए हैं?
क्या शासन और प्रशासन की नाक के नीचे ये साजिशें पनपती रहेंगी?
उत्तर जरूरी है – और अब नहीं तो कब?

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