छत्तीसगढ़टॉप न्यूज़राज्यलोकल न्यूज़

“आदेश भी टूटे, सड़कें भी”, सिस्टम चुप, अफसरशाही की लापरवाही से नैला-बलौदा मार्ग मौत का रास्ता बना

दो महीने बाद भी नहीं भरे गड्ढे, कलेक्टर के आदेश को अफसरों ने बनाया मज़ाक

“आदेश भी टूटे, सड़कें भी”, सिस्टम चुप, अफसरशाही की लापरवाही से नैला-बलौदा मार्ग मौत का रास्ता बना

दो महीने बाद भी नहीं भरे गड्ढे, कलेक्टर के आदेश को अफसरों ने बनाया मज़ाक

जांजगीर-चांपा : शासन-प्रशासन की नाकामी और अफसरशाही की ढुलमुल कार्यशैली का जीता-जागता उदाहरण है नैला से बलौदा मार्ग। 27 मई 2025 को आयोजित साप्ताहिक समय-सीमा बैठक में कलेक्टर जन्मेजय महोबे ने स्पष्ट निर्देश दिए थे कि बरसात शुरू होने से पहले सभी जर्जर सड़कों की मरम्मत हर हाल में पूरी होनी चाहिए।

लेकिन अफसरों ने इन निर्देशों को न केवल नज़रअंदाज़ किया, बल्कि दो महीनों में एक गड्ढा तक भरने की जहमत नहीं उठाई। सिवनी और जावलपुर के बीच का सड़क हिस्सा पूरी तरह से गड्ढों में तब्दील हो चुका है, यह मार्ग अब सड़क कम, संभावित श्मशान ज्यादा लगने लगा है।

कोल ट्रेलरों से बढ़ा संकट:

महावीर कोलवाशरी से प्रतिदिन गुजरने वाले भारी ट्रेलरों ने इन गड्ढों को और भी विशाल और गहरे बना दिया है। बारिश ने रही-सही कसर पूरी कर दी है। अब स्थिति यह है कि सड़क और गड्ढे का फर्क करना असंभव हो गया है।

कुछ दिन पहले एक इलेक्ट्रिक ऑटो इसी मार्ग पर एक तेज़ रफ्तार कोल ट्रेलर से टकरा गया। गनीमत रही कि कोई बड़ा हादसा नहीं हुआ, लेकिन सवाल यह है कि अगली बार कौन बचेगा, कौन मरेगा?

जनता त्रस्त, प्रशासन मस्त:

स्थानीय ग्रामीणों ने कई बार शिकायत की, लेकिन जन सुनवाई की फाइलें शायद धूल खा रही हैं।
जावलपुर के एक बुजुर्ग ग्रामीण का कहना है, “हमने समझा था कलेक्टर के निर्देश के बाद कुछ सुधार होगा, लेकिन यहां तो अधिकारी खुद ‘गड्ढा विकास योजना’ चला रहे हैं।”

सवाल जिनका जवाब जरूरी है:

1. क्या अफसरों को कलेक्टर के स्पष्ट निर्देशों की कोई अहमियत नहीं है?

2. दो महीने का वक्त कम होता है क्या कुछ गड्ढे भरने के लिए?

3. अगर हादसे में किसी की जान जाती, तो क्या तब भी जवाबदेही तय होती?

अब तो कार्रवाई चाहिए, सिर्फ समीक्षा नहीं:

अब वक़्त आ गया है कि इस मुद्दे को सिर्फ मीटिंग्स और बैठकों में घुमाने की बजाय, जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई हो।

संबंधित विभाग से जवाब-तलब किया जाए

सड़क मरम्मत के कार्य की जांच के आदेश हों

और सबसे जरूरी – जनता को आश्वासन नहीं, परिणाम मिलें

अगर मीडिया में ये मुद्दा नहीं उठता, तो शायद प्रशासन इन सड़कों की दुर्दशा को सामान्य मान चुका होता। अब देखने वाली बात यह होगी कि प्रशासन जागता है या जनता को यूं ही गड्ढों में गिरकर मरना पड़ेगा।

“जब अफसर आदेशों को ठुकरा दें, तो समझिए जनता की ज़िंदगी उनकी प्राथमिकता में नहीं रही।”

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!