16 हजार एनएचएम संविदा स्वास्थ्यकर्मी आज से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर
सरकार की बेरुखी से स्वास्थ्य सेवाएं ठप होने की कगार पर

16 हजार एनएचएम संविदा स्वास्थ्यकर्मी आज से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर
सरकार की बेरुखी से स्वास्थ्य सेवाएं ठप होने की कगार पर
20 साल से संविलियन, बीमा-पेंशन और अनुकंपा नियुक्ति जैसी मूलभूत मांगों की अनदेखी
SNCU सहित सभी स्वास्थ्य सेवाएं होंगी बाधित, जिम्मेदार होगा शासन-प्रशासन
रायपुर। छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य सेवाएं एक बड़े संकट की ओर बढ़ रही हैं। प्रदेशभर के 16 हज़ार राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) संविदा स्वास्थ्य कर्मचारी आज से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए हैं। कर्मचारियों ने साफ चेतावनी दी है कि यदि अब भी उनकी लंबित मांगों पर ठोस कदम नहीं उठाया गया तो पूरे प्रदेश की चिकित्सा व्यवस्था पूरी तरह चरमरा जाएगी और इसकी पूर्ण जिम्मेदारी शासन-प्रशासन की होगी।
एनएचएम संविदा कर्मचारी पिछले 20 वर्षों से संविलियन, स्थायीकरण, अनुकंपा नियुक्ति, ग्रेड पे निर्धारण, कैशलेस बीमा, पब्लिक हेल्थ कैडर जैसी मांगों को लेकर सरकार से गुहार लगाते आ रहे हैं। कोरोना काल में इन्हीं कर्मचारियों ने अपनी जान पर खेलकर जनता की सेवा की, कई ने तो अपनी जान भी गंवा दी, लेकिन उनके परिवारों को आज तक अनुकंपा नियुक्ति या आर्थिक सुरक्षा नहीं मिली।
कर्मचारियों का कहना है कि वे बीमा और पेंशन जैसी मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित हैं। पड़ोसी राज्यों मध्यप्रदेश और बिहार में एनएचएम कर्मचारियों को नियमितीकरण, समान काम समान वेतन, नई पेंशन योजना और जॉब सुरक्षा दी जा चुकी है, लेकिन छत्तीसगढ़ में 20 साल बाद भी उन्हें “संविदा की बेड़ियों” में जकड़कर रखा गया है।
कर्मचारी संगठन ने आरोप लगाया कि वे 150 से अधिक बार मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री, सांसद, विधायक और अधिकारियों को आवेदन व ज्ञापन सौंप चुके हैं, लेकिन अब तक केवल आश्वासन मिला है, ठोस कार्रवाई नहीं। यहां तक कि 1 मई मजदूर दिवस और 14 जुलाई को हुई चर्चाओं में भी मांगों को एक माह में पूरा करने का वादा किया गया था, पर आज तक कोई निर्णय नहीं लिया गया।
स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ेगा असर
इससे पहले कर्मचारी नवजात शिशु देखभाल केंद्र (SNCU) जैसी आपात सेवाओं को आंदोलन से बाहर रखते थे ताकि मरीज प्रभावित न हों। लेकिन अब शासन की उपेक्षा से आक्रोशित कर्मचारियों ने चेतावनी दी है कि इस बार SNCU और आपातकालीन सेवाएं भी ठप रहेंगी।
सरकार की बेरुखी पर सवाल
कर्मचारियों का आरोप है कि सरकार ने शिक्षकों का संविलियन और नौकरी से निकाले गए ढाई हजार शिक्षकों की सेवा बहाली कर “सहृदयता” दिखाई, लेकिन स्वास्थ्य कर्मचारियों के साथ सौतेला व्यवहार कर रही है। अगर सरकार ने जल्द समाधान नहीं निकाला, तो यह आंदोलन प्रदेश की जनता की सेहत के लिए भीषण संकट साबित हो सकता है। अब देखना यह होगा कि राज्य सरकार कब तक कर्मचारियों की इस “आखिरी लड़ाई” को नजरअंदाज करती है।




