फ़र्ज़ी दिव्यांग को निगम अध्यक्ष ने किया सम्मानित, “जीरो टॉलरेंस” की नीति पर सवाल
15 साल का 1000 करोड़ घोटाला, सत्ता से जुड़े नेताओं और अफसरशाही की मिलीभगत पर उठे सवाल

फ़र्ज़ी दिव्यांग को निगम अध्यक्ष ने किया सम्मानित, “जीरो टॉलरेंस” की नीति पर सवाल
15 साल का 1000 करोड़ घोटाला, सत्ता से जुड़े नेताओं और अफसरशाही की मिलीभगत पर उठे सवाल
रायपुर। छत्तीसगढ़ में दिव्यांग कल्याण के नाम पर हुए अब तक के सबसे बड़े घोटाले ने सरकार और अफसरशाही दोनों को कठघरे में खड़ा कर दिया है। जांजगीर में निःशक्तजन वित्त एवं विकास निगम के अध्यक्ष लोकेश कावड़िया द्वारा एक फ़र्ज़ी दिव्यांग को सम्मानित करने का मामला सामने आने के बाद विपक्ष और दिव्यांग संगठनों ने सरकार की “जीरो टॉलरेंस” की नीति पर सवाल खड़े किए हैं।
इसी बीच, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने दिव्यांग कल्याण योजनाओं में हुए 1000 करोड़ से अधिक के अनियमितताओं को “सिस्टमेटिक करप्शन” करार देते हुए CBI जांच के आदेश दिए हैं। अदालत का साफ कहना है कि यह केवल “प्रशासनिक चूक” नहीं बल्कि इसमें वरिष्ठ अधिकारियों की सक्रिय मिलीभगत भी रही है।
15 साल, 14 किरदार और 1000 करोड़ का स्कैम
विशेष ऑडिट रिपोर्ट और जांच दस्तावेजों से खुलासा हुआ है कि यह घोटाला 2004 से 2018 तक 15 सालों तक चलता रहा। इसमें 14 बड़े किरदार शामिल रहे, जिनमें पूर्व मंत्री, अधिकारी और NGO संचालक प्रमुख रूप से सामने आए। इस केस में BJP विधायक, 7 रिटायर्ड IAS और 6 अधिकारी भी शक के घेरे में बताए जा रहे हैं। हाईकोर्ट के आदेश के बाद अब CBI की टीम इस मामले में जांच शुरू कर चुकी है और सूत्रों के मुताबिक जल्द ही छापेमारी हो सकती है।
SRC और PRRC में 31 अनियमितताएँ
स्टेट रिसोर्स सेंटर (SRC) और पीआरआरसी (PRRC) के संचालन में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियाँ हुईं। नकद भुगतानों में गड़बड़ी, फर्जी नियुक्तियाँ, वेतन का दुरुपयोग, कृत्रिम अंगों की सप्लाई में धांधली। रिपोर्ट में साफ तौर पर लिखा गया है कि इस पूरी साजिश में NGO के डिप्टी डायरेक्टर राजेश तिवारी की सबसे बड़ी भूमिका रही।
राजेश तिवारी की भूमिका और मजबूत पकड़
राजेश तिवारी संविदा पर रहते हुए भी कई अहम पदों पर काबिज रहे। उनके सिर्फ सिग्नेचर से NGO के खाते में करोड़ों रुपए ट्रांसफर होते रहे। केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं का पैसा डायवर्ट कर NGO को दिया गया। उनकी पकड़ इतनी मजबूत रही कि सिर्फ 32 साल की पेंशन भी हथिया ली। तिवारी 2022 तक निःशक्तजन वित्त एवं विकास निगम में महाप्रबंधक के पद पर रहे और अब वही निगम उनके कार्यकाल की गड़बड़ियों को लेकर सवालों के घेरे में है।
मंत्रियों पर भी उठ रहे सवाल
महिला एवं बाल विकास विभाग के ज़रिए चलने वाले इस स्कीम में 2004 से 2018 के बीच तीन मंत्री बदले—रेणुका सिंह, लता उसेंडी और रमशीला साहू। बताया जा रहा है कि इन मंत्रियों को 15 साल तक इस घोटाले की भनक तक नहीं लगी। हालांकि स्कैम में पूर्व मंत्री रेणुका सिंह का नाम NGO फाउंडर रोल में उछल रहा है।
सत्ता की नज़दीकियाँ और विरोध
इतने बड़े घोटाले और जांच के आदेशों के बावजूद निगम अध्यक्ष लोकेश कावड़िया का प्रतिवादी राजेश तिवारी के साथ मंच साझा करना और फ़र्ज़ी दिव्यांग को सम्मानित करना गंभीर सवाल खड़े कर रहा है। विपक्ष का आरोप है कि सत्ता से जुड़े लोग ही आरोपियों को बचाने और जांच को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं।
दिव्यांग संगठनों की मांग
दिव्यांग संगठनों का कहना है कि हाईकोर्ट ने सिर्फ SRC और PRRC तक जांच सीमित रखी है, लेकिन निगम की स्थापना से अब तक हुई वित्तीय अनियमितताओं की भी CBI जांच होनी चाहिए। उनका दावा है कि निगम में भी करोड़ों रुपये के घोटाले उजागर होंगे।




