
कूटरचना में एक्सपर्ट मेडम ने रची फर्जी कहानी, जिस स्कूल में कदम नहीं रखा, वहां का लगाया अनुभव प्रमाण पत्र
फर्जी अनुभव से पाए 12 अंक, बनी शिक्षिका, अब किसी योग्य उम्मीदवार का हक छीन कर कर रही मौज
बलौदा। यह एक ऐसा मामला है जिसे सुनकर किसी के भी होश उड़ जाएं। शिक्षण जैसी सम्मानजनक नौकरी पाने के लिए भी जब लोग फर्जीवाड़े की हदें पार करने लगें तो यह शिक्षा व्यवस्था पर बड़ा सवाल है। बलौदा विकासखंड के शिक्षा अधिकारी कार्यालय अंतर्गत प्राथमिक शाला में पदस्थ एक महिला शिक्षिका, जिन्हें क्षेत्र में कंवर मेडम के नाम से जाना जाता है, ने ऐसा ही किया है।
मिली जानकारी के अनुसार, कंवर मेडम ने शिक्षक भर्ती प्रक्रिया के दौरान ऐसा अनुभव प्रमाण पत्र लगाया है, जिस स्कूल का उन्होंने चेहरा तक नहीं देखा। तीन वर्ष का फर्जी अनुभव प्रमाण पत्र लगाकर उन्होंने अनुसूचित जनजाति महिला चयन सूची में 12 अतिरिक्त अंक हासिल कर लिए। इन्हीं 12 अंकों के दम पर उनका चयन संभव हुआ।
सूत्रों के अनुसार, कंवर मेडम को कुल 50.73 अंक प्राप्त हुए थे, जबकि सूची में तीसरे स्थान पर रहते हुए वे चयनित हुईं। वहीं अंतिम चयनित महिला उम्मीदवार के 47.54 अंक थे। यदि फर्जी अनुभव के 12 अंक हटाए जाएं तो कंवर मेडम का चयन होना असंभव था। इस प्रकार उन्होंने किसी अन्य योग्य उम्मीदवार का हक छीन लिया।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि जब मीडिया ने उनसे सवाल किया कि उन्होंने अनुभव किस स्कूल से प्राप्त किया और कब शिक्षण कार्य किया, तो मेडम ने सीधा इंकार कर दिया “हमने किसी स्कूल में नहीं पढ़ाया।” बावजूद इसके वे गर्व से कहती हैं कि उन्होंने यह पद अपनी “योग्यता” से हासिल किया है।
दरअसल, उनकी “योग्यता” फर्जी दस्तावेज तैयार करने की निकली। उन्होंने 12वीं कक्षा में 450 में से मात्र 249 अंक (55.33%) प्राप्त किए थे, जिससे चयन सूची में उनका वास्तविक प्रतिशत 38.33 आता है, जो अंतिम चयनित उम्मीदवार से भी काफी कम है।
अब सवाल यह है कि शिक्षा विभाग ने बिना सत्यापन के ऐसा प्रमाण पत्र कैसे स्वीकार किया? क्या जांच अधिकारी इस मामले को नजरअंदाज कर रहे हैं? यदि नहीं, तो अब तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
यह मामला न केवल नियुक्ति प्रक्रिया की पारदर्शिता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है बल्कि यह भी दर्शाता है कि फर्जी दस्तावेज़ों के बल पर कोई भी योग्य उम्मीदवारों का हक छीन सकता है। विभागीय स्तर पर इस प्रकरण की तत्काल जांच आवश्यक है, ताकि भविष्य में ऐसी “कूटरचना की योग्यता” शिक्षा व्यवस्था पर कलंक न बन सके।




