
महुआ शराब बेचने वालों पर ताबड़तोड़ कार्रवाई अच्छी बात, पर बड़े कारोबारियों पर खामोश क्यों?
छोटे पर ताबड़तोड़ कार्रवाई, बड़े माफिया अछूते! दीपावली में पुलिस की ‘चयनवादी’ सख्ती उजागर
जांजगीर-चांपा: जिले में थाना स्तर की पुलिस लगातार छोटी कच्ची महुआ शराब बनाने और बेचने वालों पर कार्यवाही कर रही है, जिसे नियम के मुताबिक ठीक भी माना जा सकता है। लेकिन सवाल यह है कि थोक में सरकारी भट्ठी से अवैध तरीके से शराब उठाकर काले बाजार में बेचने वाले बड़े सप्लायर और बड़े कारोबारी कब पकड़े जाएंगे? महज 15 से 20 लीटर महुआ शराब जब्त करने को ही उपलब्धि बताकर प्रेस-नोट जारी किया जा रहा है, जबकि बड़े नेटवर्क पर कार्रवाई पूरी तरह नदारद है।
पूरे जिले में दीपावली के दौरान तमाम मोहल्लों, वार्डों और रिहायशी इलाकों में फटाके का अवैध कारोबार खुलेआम चला, मगर जिला पुलिस ने एक भी फटाका व्यवसायी पर कार्रवाई नहीं की। यह अपने आप में हैरानी की बात है। दूसरी ओर कई स्थानों पर पुलिसकर्मी खुद उन्हीं दुकानों और गोदामों के पास ड्यूटी करते नजर आए जहाँ अवैध रूप से बड़े पैमाने पर पटाखा बेचा जा रहा था। सवाल यह उठता है कि वे ड्यूटी कर रहे थे या सुरक्षा दे रहे थे?
सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि मुख्यालय से सटे नैला चौकी क्षेत्र में करीब 20 कार्टून अवैध फटाका पकड़े जाने की जानकारी खुद पुलिस आरक्षकों व तत्कालीन टीआई ने टेलीफोनिक बातचीत में दी थी, मगर इतने बड़े जप्ती की जानकारी न तो सार्वजनिक की गई और न ही मीडिया को बताई गई। जबकि 2-2 लीटर महुआ की कार्रवाई पर भी प्रेस नोट जारी कर वाहवाही लूटने की परंपरा जारी है।
“अवैध काम करने वाला चाहे गरीब हो या अमीर, कार्रवाई सब पर होनी चाहिए। कानून का मकसद न्याय है, भेदभाव नहीं। परंतु वर्तमान परिस्थितियों में कार्रवाई केवल कमजोर वर्ग तक सीमित दिख रही है, जबकि बड़े कारोबारी और नेटवर्क संचालक छूट का लाभ ले रहे हैं।”
इस चयनवादी कार्रवाई से बड़ा सवाल यह उठता है कि
* क्या पुलिस केवल कमजोर और गरीब शराब बेचने वालों तक ही सीमित कार्रवाई कर रही है?
* क्या बड़े कारोबारी, नेटवर्क चलाने वाले, और अवैध पैमाने पर कारोबार करने वाले संरक्षित हैं?
* जब 20 कार्टून फटाका पकड़ा गया तो उसका खुलासा मीडिया से क्यों रोका गया?
* और दीपावली के पूरे सीजन में एक भी बड़े फटाका कारोबारी पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
जिले के लोगों का कहना है कि यदि पुलिस वाकई सख्त होती तो त्योहार सीजन में सबसे पहले बड़े नेटवर्क और सप्लायर पकड़े जाते, मगर तस्वीर इसके उलट दिख रही है। सवाल उठना लाजिमी है कि क्या कानून केवल गरीब और कमजोरों के लिए ही है…?




