
मरम्मत के नाम पर लोकतंत्र बंद : रायपुर में विरोध की आवाज़ जब्त, दिव्यांगों को भी हटाने की तैयारी!
तूता धरना स्थल दो महीने के लिए सील, वैकल्पिक जगह तक नहीं, 26 मार्च से बैठे दिव्यांगों को प्रशासन फिर सड़क पर धकेलेगा
रायपुर : नवीन राजधानी को चमकाने का दावा करने वाली सरकार अब जनता की आवाज़ को भी ‘मरम्मत’ में बंद करने पर उतर आई है। नवा रायपुर के तूता धरना स्थल को दो महीने के लिए बंद कर दिया गया है, वह भी बिना किसी वैकल्पिक स्थान के। यह वही स्थल है जहां छत्तीसगढ़ दिव्यांग सेवा संघ के दिव्यांगजन 26 मार्च से अपनी छह सूत्रीय मांगों को लेकर लगातार धरने पर बैठे हैं।
कलेक्टर के आदेश में साफ लिखा गया है कि “अगले आदेश तक” किसी भी प्रकार का धरना-प्रदर्शन नहीं होगा। सवाल यहां सिर्फ मरम्मत का नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक अधिकारों के जबरन निष्कासन का है।

दिव्यांगों का आक्रोश :
राज्य के जिम्मेदारों ने 7 महीने में एक बार आकर देखना तक उचित नहीं समझा
तूता स्थल से कुछ ही दूरी पर समाज कल्याण मंत्री का निवास है, पर उन्होंने महीनों से चल रहे आंदोलन को देखने तक नहीं आया। दिव्यांगों की पीड़ा सुनना तो दूर, अब उनका धरना स्थल ही छीनने का फरमान जारी कर दिया गया।

“यह फैसला मरम्मत नहीं, लोकतंत्र की तोड़फोड़” – प्रदेश अध्यक्ष संतोष टोंडे
“हमें पहले मरीन ड्राइव से उठाकर यहीं बैठाया गया और अब यहां से भी हटाने की तैयारी है। यह आदेश संवेदनहीनता नहीं तो और क्या है? सरकार सिर्फ फोटो-ऑप आंदोलनों को सुनती है, असली दर्द से भागती है। मरम्मत के बहाने आवाज़ दबाई जा रही है।”
“विकलांगों को खदेड़ने वाली सरकार, संवेदना खो चुकी है” – प्रदेश सचिव माला पांडेय
“हमारी मांगें सुनने एक भी अधिकारी नहीं आया, अब धरना स्थल को ही बंद कर दिया गया। यह लोकतंत्र का अपमान है। मरम्मत सिर्फ स्थल की नहीं, शासन के रवैये की होनी चाहिए। आज दिव्यांगों को रास्ते से हटाया जा रहा है, कल किसानों और बेरोजगारों की बारी आएगी।”
क्या यह ‘रखरखाव’ है या ‘दमन’?
सरकार का दावा – ज़मीनी सच्चाई
धरना स्थल की मरम्मत – आंदोलन बंद करने की पटकथा
दो माह का प्रतिबंध – आदेश — “अगले आदेश तक”
नागरिकों की सुविधा – नागरिक अधिकारों का दमन
विकल्प बाद में मिलेगा – फिलहाल आवाज़ बंद करो
जनता पूछ रही है…
* अगर धरना का ही अधिकार छीन लिया गया तो विरोध कहाँ होगा?
* लोकतंत्र सिर्फ चुनाव तक सीमित रह गया क्या?
* दिव्यांगों से संवाद की जगह बाड़ाबंदी क्यों?
* मरम्मत स्थल की है या लोकतंत्र के बुनियादी अधिकारों की?
छत्तीसगढ़ की राजधानी अब आंदोलन-मुक्त नहीं, आवाज-मुक्त बनाई जा रही है और शासन की यह चुप्पी, लोकतंत्र के सबसे कमजोर वर्ग पर सबसे बड़ा प्रहार बनती जा रही है।





सरकार को हमारी मांगों को पूरा करना ही होगा।