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सूचना का अधिकार मंत्रालय में बेअसर, समाज कल्याण विभाग ने दिव्यांगों की आवाज़ दबाने की कोशिश की?

शुल्क की पावती के बावजूद आवेदन को अमान्य ठहराया, क्या छिपाना चाहता है मंत्रालय महानदी भवन?

सूचना का अधिकार मंत्रालय में बेअसर, समाज कल्याण विभाग ने दिव्यांगों की आवाज़ दबाने की कोशिश की?

शुल्क की पावती के बावजूद आवेदन को अमान्य ठहराया, क्या छिपाना चाहता है मंत्रालय महानदी भवन?

रायपुर। राज्य के दिव्यांगजन समाज की न्यायिक और प्रशासनिक उपेक्षा एक बार फिर उजागर हुई है। समाज कल्याण विभाग, मंत्रालय महानदी भवन नवा रायपुर में लगाए गए सूचना के अधिकार के आवेदन को विभाग ने मनमाने ढंग से अमान्य घोषित कर दिया है।

आवेदक संतोष कुमार टोंडे ने 6 अक्टूबर 2025 को सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत दिव्यांगों की छह सूत्रीय मांगों पर विभाग द्वारा की गई कार्रवाई की जानकारी मांगते हुए आवेदन प्रस्तुत किया था। सभी आवेदनों के साथ नियमानुसार 10 रुपये का शुल्क जमा कर विधिवत पावती प्राप्त की गई, लेकिन विभाग ने अपने जवाब में यह कहकर सभी आवेदन निरस्त कर दिया कि शुल्क संलग्न नहीं था।

विशेषज्ञों का कहना है कि बिना शुल्क प्राप्त किए पावती जारी ही नहीं की जा सकती, ऐसे में विभाग का यह तर्क पूरी तरह असत्य और भ्रामक प्रतीत होता है। जानकारों का मानना है कि यह कदम जानबूझकर सूचना देने से बचने और वास्तविक तथ्यों को छिपाने की मंशा से उठाया गया है।

जानकारी के अनुसार, 06 नवम्बर 2025 को विभाग ने इसी तरह के कई आरटीआई आवेदनों को एक साथ अस्वीकार कर दिया, जिससे यह संदेह गहरा गया है कि समाज कल्याण विभाग या तो दिव्यांगों की छह सूत्रीय मांगों पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं कर पाया, या फिर फाइलों में ऐसी अनियमितताएँ हैं जिन्हें उजागर होने से रोका जा रहा है।

कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, यदि आवेदक के पास शुल्क जमा की वैध पावती मौजूद है, तो विभाग का यह निर्णय सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 20 के तहत दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है। यह प्रकरण न केवल एक नागरिक के अधिकार के उल्लंघन का उदाहरण है, बल्कि यह सवाल भी उठाता है कि क्या समाज कल्याण विभाग दिव्यांगों की आवाज़ दबाने की कोशिश कर रहा है? जब “दिव्यांगों के अधिकारों” की जानकारी तक छिपाई जा रही हो, तब शासन की संवेदनशीलता पर प्रश्नचिह्न लगना स्वाभाविक है।

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