सरपंच के ‘बेजा कब्जा’ को हथियार बनाकर चली भारी ब्लैकमेलिंग? महेंद्र–मुकेश के खातों में पहुँची राशि ने खोले नए राज
ऑडियो साक्ष्यों में बड़ा खुलासा, सरपंच की निर्वाचन योग्यता पर खतरा बताकर वर्षों से पंचायत पर दबाव? सचिव व प्रतिनिधियों ने बार-बार शासकीय राशि इनके निजी खातों में क्यों भेजी, बड़ा सवाल!

सरपंच के ‘बेजा कब्जा’ को हथियार बनाकर चली भारी ब्लैकमेलिंग? महेंद्र–मुकेश के खातों में पहुँची राशि ने खोले नए राज
ऑडियो साक्ष्यों में बड़ा खुलासा, सरपंच की निर्वाचन योग्यता पर खतरा बताकर वर्षों से पंचायत पर दबाव? सचिव व प्रतिनिधियों ने बार-बार शासकीय राशि इनके निजी खातों में क्यों भेजी, बड़ा सवाल!
जांजगीर-चाम्पा। अंगारखार पंचायत घोटाले की तीसरी कड़ी ने पूरे जिले में भूचाल ला दिया है। अब यह मामला सिर्फ भ्रष्टाचार या फर्जी निर्माण तक सीमित नहीं रहा, बल्कि सरपंच की निर्वाचन योग्यता, अवैध कब्जा, ब्लैकमेलिंग और पंचायत राशि के निजी लाभ तक गहरी जड़ें फैलाता दिख रहा है। ऑडियो साक्ष्यों, बयानों और निर्वाचन संबंधी नियमों के विश्लेषण के आधार पर यह सामने आया है कि महेंद्र कुर्मी और मुकेश लहरे ने सरपंच के ‘बेजा कब्जा’ से जुड़े संवेदनशील तथ्य को हथियार बनाकर पंचायत तंत्र पर दबाव बनाया और बदले में शासकीय राशि अपने खातों में डलवाई। यह पूरा प्रकरण अब आर्थिक अनियमितता के साथ-साथ राजनीतिक ब्लैकमेलिंग + शासकीय राशि दुरुपयोग, दोनों की गंभीर व नई दिशा पकड़ चुका है।
निर्वाचन नियमों ने बढ़ाई सरपंच की मुश्किलें, यही बनी ब्लैकमेलिंग की जमीन
छत्तीसगढ़ पंचायत राज अधिनियम, 1993 के अनुसार- सरकारी/राजस्व भूमि पर यदि अवैध कब्जा दर्ज हो, नोटिस जारी हो या प्रकरण लंबित हो, तो उस व्यक्ति की पंचायत चुनाव लड़ने की पात्रता प्रभावित होती है। यानी, बेजा कब्जे का मामला सरपंच की कुर्सी छीन सकता था और इसी कमजोरी का फायदा उठाकर महेंद्र कुर्मी और मुकेश लहरे ने सरपंच और सचिव पर दबाव बनाया। यह बात ऑडियो साक्ष्यों और दोनों के बयानों से साफ झलकती है। “सरपंच का घर बेजा कब्जा में बना… ये जानकारी तहसील से मिल जाएगी” महेंद्र कुर्मी की स्वीकारोक्ति सामने आए ऑडियो में महेंद्र कुर्मी कहते हैं “सरपंच का घर बेजाकब्जा में बना है… मीडिया वाले पूछें तो सारा भेद खुल जाएगा… बाकी जानकारी तहसील से मिल जाएगी।” इस बयान के तुरंत बाद सबसे बड़ा सवाल उठता है अगर महेंद्र को वर्षों से यह पता था, तो उन्होंने शिकायत क्यों नहीं की? चुप्पी के बदले उनके खाते में पैसा क्यों गया?
महेंद्र–मुकेश के खातों में राशि डलने का सिलसिला और गहरे संकेत देता है

पचरी मरम्मत के नाम पर 35,000 रु मुकेश के खाते में

नाली निर्माण के लिए 60,000 रु

शौचालय के नाम पर 45,000 रु

सचिव के निजी खाते में फोन-पे से भेजी राशि
पचरी के नाम पर मुकेश को 35,000 रु, जिसका बड़ा हिस्सा उसने पंचों में बाँट दिया।
इन सारे लेनदेन में एक ही पैटर्न दिखता है—
सरपंच–सचिव → दबाव में → राशि ट्रांसफर → महेंद्र–मुकेश
सेंसेशनल मोड़- महेंद्र का दावा: “सरपंच का पति भूखाऊराम ने 10,000 रुपये उधारी मांगा” महेंद्र कुर्मी ने स्वीकार किया कि “35 हजार में से भूखाऊराम ने 10 हजार उधारी मांगा… नहीं देने पर मुझ पर उल्टे आरोप लगाए हैं।”

उधारी नहीं मिलने पर सरपंच पति भुखाऊ राम ने अपने नाम पर भी निकलवा लिया 10500 रुपया
यह कथन कई गंभीर विसंगतियाँ उजागर करता है:
* शासकीय राशि को ‘उधारी’ की तरह कैसे मांगा गया?
* राशि देने–न देने का दबाव क्या चल रहा था?
* क्या यह पूरा लेनदेन ‘चुप रहो, पैसा लो’ का सौदा था?
* मुकेश लहरे भी आरोपों के घेरे में, पर लेनदेन वही!
महेंद्र स्वयं मुकेश पर आरोप लगाते हैं कि “उसने पंचायत की राशि का दुरुपयोग किया है।” पर उल्टा उसी मुकेश को पंचायत से 35 हजार मिलना और उसका पंचों में बाँटना, अब सीधे सांठगांठ और बंदरबांट की पुष्टि करता दिख रहा है।
क्या पंचायत की शासकीय राशि “बेजा कब्जे” के मामले को दबाए रखने के सौदे के रूप में दी गई?
क्या सचिव–सरपंच लगातार दबाव में रहे?
क्या महेंद्र–मुकेश ‘जागरूक नागरिक’ नहीं, बल्कि पंचायत पर दबाव बनाने वाले नए दलाल बन गए?
क्या यह पूरा मामला ब्लैकमेलिंग + भ्रष्टाचार का संयुक्त घोटाला है?
अब प्रशासन की जिम्मेदारी भारी,
क्या होगी निष्पक्ष और कठोर कार्रवाई?
इस पूरे प्रकरण ने आर्थिक अनियमितता, ब्लैकमेलिंग, दबाव, अवैध कब्जे और निर्वाचन पात्रता सबको एक ही बिंदु पर ला दिया है। अब सवाल यह है क्या जिला प्रशासन इस पेचीदा घोटाले को सिरे से जाँचकर सच सामने लाएगा… या फिर यह मामला भी सांठगांठ की धूल में दबा दिया जाएगा?




