
“बनारस टूर के बहाने वसूली! मार्गदर्शन महाविद्यालय पर छात्राओं का गंभीर आरोप”
“12 हजार रुपये नहीं दिए तो रिजल्ट रोकने की धमकी, पूर्व विधायक और कलेक्टर ने जताई चिंता”
बैकुंठपुर (कोरिया)। देशभर में निजी शैक्षणिक संस्थानों द्वारा मनमानी और नियमों की अनदेखी के मामले लगातार सामने आते रहे हैं। इसी कड़ी में छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले के बैकुंठपुर स्थित मार्गदर्शन महाविद्यालय पर गंभीर आरोप लगे हैं। बी.एड. द्वितीय वर्ष की छात्राओं ने संस्थान के संचालक निगमेन्द्र प्रताप सिंह पर शैक्षणिक भ्रमण के नाम पर जबरन 12 हजार रुपये वसूलने का आरोप लगाया है। छात्राओं ने कलेक्टर जनदर्शन में पहुंचकर इसकी लिखित शिकायत भी दी है।
शिकायत में छात्राओं ने बताया कि उन्हें बनारस टूर के लिए प्रति छात्रा 12 हजार रुपये जमा करने को कहा गया है, जबकि कई छात्राएं आर्थिक रूप से इस स्थिति में नहीं हैं। जब छात्राओं ने इस भ्रमण में जाने से इनकार किया, तो उन्हें धमकी दी गई कि “यदि तुम लोग टूर पर नहीं जाओगी तो तुम्हारा रिजल्ट रोक दिया जाएगा।”
छात्राओं का कहना है कि बी.एड. पाठ्यक्रम के सिलेबस में कहीं भी शैक्षणिक भ्रमण अनिवार्य नहीं है। फिर भी उन पर दबाव बनाया जा रहा है। इस तरह की जबरदस्ती मानसिक उत्पीड़न के समान है।
पूर्व विधायक ने जताई नाराजगी
इस मुद्दे पर बैकुंठपुर की पूर्व विधायक अंबिका सिंहदेव ने भी नाराजगी जाहिर की। उन्होंने कहा, “12 हजार रुपये की मांग करना और टूर में न जाने पर रिजल्ट रोकने की धमकी देना पूरी तरह से गलत है। हर परिवार इतने पैसे नहीं दे सकता। छात्राओं को धमकाना और उपस्थिति या नंबर काटने की बात करना शिक्षा की गरिमा के खिलाफ है। दुर्भाग्य से बी.एड. की शिक्षा के लिए क्षेत्र में यही एकमात्र संस्थान है, जिससे विद्यार्थियों के पास कोई और विकल्प भी नहीं है।”
प्रशासन ने लिया संज्ञान
इस मामले पर कोरिया कलेक्टर चंदन त्रिपाठी ने पुष्टि की है कि उन्हें शिकायत प्राप्त हुई है और उसी दिन महाविद्यालय प्रिंसिपल को बुलाया गया था। अपर कलेक्टर को मामले की जांच सौंपी गई है, और रिपोर्ट जल्द आने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि यदि जांच में आरोप सही पाए जाते हैं, तो उच्च शिक्षा विभाग एवं डी.पी.आई. को जानकारी देकर कार्रवाई की जाएगी।
यह मामला न केवल शिक्षा प्रणाली में निजी संस्थानों की मनमानी को उजागर करता है, बल्कि उन छात्रों की मजबूरी और मानसिक दबाव को भी सामने लाता है, जो सीमित संसाधनों में शिक्षा हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं। अब यह देखना अहम होगा कि प्रशासन इस दिशा में क्या ठोस कदम उठाता है और छात्राओं को न्याय कब तक और कैसे मिलता है।