जब अपराध मौके पर मिला, फिर फाइलों में क्यों घूम रहा इंसाफ?
रेत माफियाओं की मशीनी दबंगई और सरकारी चुप्पी, अवैध उत्खनन पकड़ा गया, फिर भी 'विवेचनाधीन'!

जब अपराध मौके पर मिला, फिर फाइलों में क्यों घूम रहा इंसाफ?
रेत माफियाओं की मशीनी दबंगई और सरकारी चुप्पी, अवैध उत्खनन पकड़ा गया, फिर भी ‘विवेचनाधीन’!
करही : जहाँ एक ओर शासन रेत माफियाओं पर सख्त कार्रवाई के दावे करता है, वहीं दूसरी ओर जमीनी हकीकत इन दावों की रेत की तरह फिसलती नजर आ रही है। ताजा मामला है ग्राम करही के महानदी रेत घाट का, जहाँ अवैध रेत उत्खनन रंगे हाथों पकड़ा गया। मशीनें भी जब्त हुईं, लेकिन मामला है कि “अभी विवेचनाधीन” है।
दिनांक 30 मई व 02 जून को खनिज विभाग और बिर्रा थाना पुलिस की संयुक्त टीम ने भारी भरकम चैन माउंटेन मशीनों को अवैध उत्खनन करते रंगे हाथों पकड़ा और शील कर दिया। लेकिन ये माफिया इतने बेखौफ हैं कि सरकारी शील को तोड़कर दोबारा उत्खनन शुरू कर दिया।
यह न केवल कानून की धज्जियां उड़ाना है, बल्कि शासन की मूकदर्शक भूमिका पर भी सवाल खड़े करता है। आखिर जब अपराध स्थल पर मशीनें चलती मिलीं, तो किस “साक्ष्य” और “विवेचना” की प्रतीक्षा की जा रही है?
विचारणीय प्रश्न
जब रेत घाट से मशीनें जब्त हो चुकी हैं, तो अपराध स्पष्ट है या नहीं?
शील तोड़ना क्या किसी आम बात की तरह लिया जा रहा है?
क्या प्रशासन की जांच मशीनों से धीमी है या माफिया से डरती है?
प्रशासन की निष्क्रियता या रणनीति?
प्रशासनिक अधिकारियों के नामों की सूची लंबी है, पर नतीजा आज भी “विवेचनाधीन” की फाइल में बंद है। इस बीच माफिया बेधड़क मशीनें फिर से घाट में उतार देते हैं और करोड़ों की रेत तस्करी बेरोकटोक चलती रहती है।
लगता है कानून सिर्फ छोटे अपराधियों के लिए होता है। बड़े माफिया के खिलाफ कार्रवाई पहले मशीन से होती है, फिर महीनों तक फाइलों से नहीं निकलती।
शासन को चाहिए कि “विवेचनाधीन” की चादर से बाहर निकलकर “दोषियों के विरुद्ध प्रभावी कार्रवाई” के यथार्थ की ओर कदम बढ़ाए, वरना माफिया तो कानून से तेज ही दौड़ते रहेंगे।