भिलाई में रेशम विभाग और मनरेगा की पहल से ग्रामीणों को मिला रोजगार,
स्व-सहायता समूहों की मेहनत लाई रंग

भिलाई में रेशम विभाग और मनरेगा की पहल से ग्रामीणों को मिला रोजगार,
स्व-सहायता समूहों की मेहनत लाई रंग
जांजगीर-चांपा। बलौदा विकासखंड के ग्राम पंचायत भिलाई में रेशम विभाग एवं महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के समन्वित प्रयासों से न केवल कोसा उत्पादन को नई पहचान मिली है, बल्कि ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति में भी उल्लेखनीय सुधार हुआ है। यह कार्य स्व-सहायता समूहों के अथक प्रयास और सतत् परिश्रम का परिणाम है, जिसमें महिलाओं और पुरुषों ने मिलकर कृमिपालन (रेशम के कीड़ों का पालन) को आजीविका का माध्यम बनाया।
अर्जुन पौधरोपण और जल संरक्षण की पहल
रेशम विभाग ने वर्ष 2001-02 में 64,000 अर्जुन पौधों का रोपण अपने विभागीय मद से किया। इसके बाद 2015-16 में रेशम विभाग और मनरेगा के अभिसरण से भिलाई में 20,500 अर्जुन पौधे लगाए गए और 42,000 पौधों की नर्सरी विकसित की गई। वर्तमान में ग्राम में 78,685 अर्जुन पौधे जीवित हैं।
मनरेगा मद से पौधरोपण, जल संरक्षण और रख-रखाव के लिए क्रमशः 3.15 लाख, 5.54 लाख एवं 5.18 लाख रुपये स्वीकृत हुए। 10.197 लाख अर्जुन पौधों की नर्सरी निर्माण के लिए राशि स्वीकृत होने से इस कार्य में गति आई। पौधों की सिंचाई, देखरेख और सीपीटी खनन जैसे कार्यों से स्थानीय मजदूरों को गांव में ही रोजगार उपलब्ध हुआ और कुल 9,884 मानव दिवस का सृजन किया गया।
स्वावलंबन की ओर सशक्त कदम
स्व-सहायता समूह “स्वावलंबन” के अध्यक्ष चंद्रकुमार एवं सदस्यों कविता बाई, रविन्द्र, धर्मवीर, सुशीलाबाई, क्रांतिबाई, शिवकुमार, लक्ष्मीन बाई, प्रियांशु, संतकुमार आदि ने अर्जुन वृक्षों पर कृमिपालन करते हुए वर्ष में दो कोसा फसलें लीं। प्रत्येक सदस्य को 50,000 से 60,000 रुपए की वार्षिक आमदनी हो रही है।
समूह की महिलाओं ने वैज्ञानिक विधियों से कोसा पालन का प्रशिक्षण प्राप्त किया और गुणवत्ता को प्राथमिकता देते हुए उत्पाद को बाजार में लोकप्रिय बना दिया है।
महिला सशक्तिकरण और प्रेरणा का स्रोत
कोसा उत्पादन से महिलाओं को न केवल आर्थिक संबल मिला, बल्कि सामाजिक पहचान भी मजबूत हुई। आत्मविश्वास से भरपूर महिलाएं अब अपने गांव और आसपास के क्षेत्रों के लिए प्रेरणा का प्रतीक बन चुकी हैं।
रेशम विभाग और मनरेगा की यह संयुक्त पहल पर्यावरण संरक्षण, ग्रामीण आजीविका संवर्धन और महिला सशक्तिकरण का एक आदर्श मॉडल बन गया है।