शासन तय करे नियम, शिक्षक चलाएं अपना कानून!
झर्राडीह स्कूल की शिक्षिका रचना मिरी का ‘छुट्टी आवेदन’ फार्मूला, समय पर न पहुंचने का नया तरीका

शासन तय करे नियम, शिक्षक चलाएं अपना कानून!
झर्राडीह स्कूल की शिक्षिका रचना मिरी का ‘छुट्टी आवेदन’ फार्मूला, समय पर न पहुंचने का नया तरीका
बलौदा। गर्मी के मद्देनजर शासन ने स्पष्ट निर्देश जारी कर स्कूलों का समय सुबह 7 बजे से 11 बजे तक निर्धारित किया है, जिससे बच्चों और शिक्षकों को गर्मी से राहत मिल सके। लेकिन शासकीय प्राथमिक शाला झर्राडीह में यह नियम केवल कागजों तक ही सीमित रह गया है। यहां पदस्थ शिक्षिका रचना मिरी ने स्कूल समय से बचने और निरीक्षण से बचाव के लिए खुद का एक अनोखा फार्मूला इजाद कर रखा है।
सूत्रों के अनुसार, रचना मिरी जो वर्ष 2007 से झर्राडीह शाला में पदस्थ हैं, फिलहाल बिलासपुर से अप-डाउन कर रही हैं। वे प्रतिदिन स्कूल आते ही ‘छुट्टी आवेदन पत्र’ प्रधान पाठक को सौंपती हैं, और यदि कोई निरीक्षण न हो तो बाद में उसे चुपचाप वापस ले जाती हैं। यह तरीका स्पष्ट रूप से शासन के आदेश और शिक्षा विभाग की गरिमा का मजाक उड़ाने जैसा है।
प्रधान पाठक की माने तो, यह प्रक्रिया रोजना की है और वह इस बात से अवगत भी हैं। अब बड़ा सवाल यह है कि
क्या रोज़ छुट्टी का आवेदन देना केवल देर से आने या अनुपस्थिति को छुपाने का तरीका बन गया है?
क्या निरीक्षण से बचाव के लिए शिक्षकों को इस तरह के ‘आवेदन खेल’ की छूट मिलनी चाहिए?
क्या यह कर्तव्यहीनता की मिसाल नहीं, जिससे विभागीय अनुशासन तार-तार हो रहा है?
इस संबंध में संकुल प्रभारी पी.आर. साहू से बात करने का प्रयास किया गया, जो स्वयं बिलासपुर से आते हैं और कन्या हायर सेकेंडरी स्कूल में प्राचार्य हैं, परंतु उनका मोबाइल फोन बंद मिला। बाद में विकासखंड शिक्षा अधिकारी से संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा कि यदि प्रधान पाठक द्वारा लिखित में शिकायत आती है तो कार्रवाई की जाएगी।
अब सवाल यह है कि –
क्या प्रधान पाठक में इतनी ईमानदारी और संवेदनशीलता है कि वे वास्तविक स्थिति को लिखें?
या वे चुप्पी की चादर ओढ़कर शिक्षिका का बचाव करेंगे?
विशेष बात यह है कि यह स्कूल विकासखंड शिक्षा अधिकारी कार्यालय से महज कुछ ही दूरी पर स्थित है। यदि अधिकारी के नाक के नीचे ऐसी मनमानी हो रही है, तो दूरस्थ अंचलों की स्थिति का सहज अनुमान लगाया जा सकता है। कहीं न कहीं विकासखंड शिक्षा अधिकारी की निगरानी और जवाबदेही पर भी गंभीर सवाल खड़े होते हैं।
यदि समय रहते कार्रवाई नहीं की गई, तो यह फार्मूला अन्य स्कूलों के लिए भी एक खराब मिसाल बन सकता है और शासन द्वारा बनाए गए नियम केवल दिखावे की औपचारिकता बनकर रह जाएंगे।