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सम्मान के मंच पर चमकने वाले शिक्षक, अब न्यायालय की चौखट पर – क्या सिर्फ पुराना स्कूल ही शिक्षा का मंदिर?

सम्मानों की गरिमा भूले शिक्षक, पदस्थापना पर मचा रहे विरोध का शोर

सम्मान के मंच पर चमकने वाले शिक्षक, अब न्यायालय की चौखट पर – क्या सिर्फ पुराना स्कूल ही शिक्षा का मंदिर?

युक्तियुक्तकरण नीति का विरोध कर रहे सम्मानित शिक्षक – विभागीय नीति की अवहेलना या व्यक्तिगत स्वार्थ

सम्मानों की गरिमा भूले शिक्षक, पदस्थापना पर मचा रहे विरोध का शोर

रायपुर। छत्तीसगढ़ में शिक्षा विभाग द्वारा लागू की गई युक्तियुक्तकरण नीति के तहत शिक्षकों का पुनः पदस्थापन किया गया है, लेकिन अनेक ऐसे शिक्षक, जिन्होंने पहले के स्कूल में कार्य करते हुए राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर अनेकों शासकीय एवं अशासकीय संस्थाओं से सम्मान प्राप्त किया है, आज जब शासन उन्हें नई जगह शिक्षा का अलख जगाने भेज रहा है, वे न सिर्फ विरोध पर उतर आए हैं, बल्कि कई तो कोर्ट के दरवाजे तक जा पहुंचे हैं।

युक्तियुक्तकरण के तहत अतिशेष हुए सम्मानित शिक्षक भूले शिक्षक सम्मान की गरिमा। वे न तो शासन की मंशा का सम्मान कर पा रहे हैं और न ही अपने ही द्वारा अर्जित शिक्षक सम्मान को सही मायनों में निभा रहे हैं।

बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या शिक्षा का सम्मान सिर्फ उन्हीं विद्यालयों में सीमित है जहाँ से यह सम्मान मिले? क्या सम्मान का असली अर्थ यह नहीं होना चाहिए कि शिक्षक हर परिस्थिति और हर स्थान पर शिक्षा के दीप जलाएं?

इन शिक्षकों ने जब पूर्व विद्यालयों में बेहतर कार्य कर सम्मान पाया था, तो अब उन्हें इस नई जगह पर उसी सम्मान को साबित करने और वहां के बच्चों को बेहतर शिक्षा देने का एक सुनहरा अवसर मिल रहा है। परन्तु युक्तियुक्तकरण के विरोध में वे जिस प्रकार शासन, विभाग व पदस्थापना प्रक्रिया का विरोध कर रहे हैं, उससे यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या सम्मान केवल मंचों की शोभा और प्रमाण पत्रों तक ही सीमित रह गया है?

कुछ शिक्षक इतने बिफरे हुए हैं कि वे विभागीय आदेश को असंवैधानिक ठहराते हुए न्यायालय तक जा पहुंचे हैं। यह स्थिति उस शिक्षक समाज के लिए चिंताजनक है, जिसे समाज आदर्श और अनुकरणीय मानता है।

शिक्षा विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “पदस्थापन केवल स्थानांतरण नहीं, बल्कि शिक्षक के कर्तव्य का विस्तार है। शिक्षक का कर्तव्य है कि वह हर जगह शिक्षा की लौ जलाए – न कि सुविधानुसार स्थान चुनने का आग्रह करे।”

सम्मान प्राप्त करना गर्व की बात है, परंतु उसका निर्वहन तभी सार्थक होता है जब सम्मानित व्यक्ति हर परिस्थिति में अपने दायित्व का निर्वहन करे। आज जब शासन युक्तियुक्तकरण के माध्यम से शिक्षा व्यवस्था को संतुलित करना चाह रहा है, तब सम्मानित शिक्षकों का विरोध कहीं न कहीं शिक्षा की गरिमा को ठेस पहुंचा रहा है।

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