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भविष्य भीग रहा है… सपने कीचड़ में फंसे हैं — स्कूली बच्चों ने संभाला सड़क आंदोलन का मोर्चा

बारिश में भीगते स्कूली बच्चों का सड़क पर आंदोलन — जिम्मेदार अब भी खामोश

बारिश में भीगते स्कूली बच्चों का सड़क पर आंदोलन — जिम्मेदार अब भी खामोश

भविष्य भीग रहा है… सपने कीचड़ में फंसे हैं — स्कूली बच्चों ने संभाला सड़क आंदोलन का मोर्चा

जांजगीर-चांपा | छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले से एक ऐसी तस्वीर आई है, जिसने पूरे सिस्टम को कटघरे में खड़ा कर दिया है। विकास के वादों की पोल तब खुली जब सैकड़ों स्कूली बच्चे बारिश में भीगते हुए सड़क पर उतर आए। यह कोई आम विरोध नहीं, बल्कि भविष्य की पीढ़ी का मौन चीखता हुआ विद्रोह था — उस व्यवस्था के खिलाफ जो अब तक सिर्फ कागजों में विकास गिनाती रही।

जर्जर सड़कों से त्रस्त बच्चों की आवाज आखिर कब सुनी जाएगी?

ग्राम खोखसा-पीथमपुर मार्ग की खस्ताहाल सड़कों से परेशान ग्रामीण पहले ही कई दिनों से आंदोलनरत हैं। लेकिन जब कोई सुनवाई नहीं हुई, तो आज स्कूली बच्चों ने खुद कमान संभाली।
भीगते शरीर, गंदे कपड़े और चप्पलों में लिपटा कीचड़ — लेकिन आंखों में संकल्प था।

बच्चों का कहना है कि सड़क कीचड़ से लबालब है। हर रोज स्कूल जाना एक संघर्ष है। कई बार फिसलकर गिर जाते हैं, यूनिफॉर्म खराब हो जाती है, और मजबूरी में स्कूल नहीं जा पाते। इससे पढ़ाई पर असर पड़ रहा है — और ये हालात अब और बर्दाश्त नहीं।

6 घंटे बीते — न कोई अफसर, न कोई कार्रवाई!

विरोध प्रदर्शन को 6 घंटे से ज़्यादा बीत चुके हैं, लेकिन कोई जिम्मेदार अधिकारी मौके पर नहीं पहुंचा।
प्रशासन की यह खामोशी न सिर्फ दुखद है, बल्कि शर्मनाक भी। सवाल उठता है कि क्या सिस्टम को बच्चों की भी कोई परवाह नहीं?

ग्रामीणों की दो टूक — ‘लिखित आश्वासन दो, तब ही हटेंगे!’

प्रदर्शनकारियों का कहना है कि अब कोई मौखिक आश्वासन नहीं चलेगा। जब तक सड़क मरम्मत की ठोस तारीख और लिखित आदेश नहीं मिलते, आंदोलन जारी रहेगा।
इधर, स्थानीय विधायक व्यास कश्यप भी आंदोलन में शामिल होकर सरकार से जवाब मांग रहे हैं। उन्होंने स्पष्ट कहा कि बच्चों को सड़क पर बैठना पड़े, इससे बड़ा दुर्भाग्य कोई और नहीं हो सकता।

क्या कहता है यह आंदोलन?

यह आंदोलन सिर्फ एक सड़क की मरम्मत की मांग नहीं है, यह सिस्टम के प्रति बढ़ते अविश्वास की आहट है। जब बच्चों को पढ़ाई छोड़ सड़क पर बैठना पड़े, तो यह लोकतंत्र के लिए चेतावनी है।

जिस जिले की पहचान कभी शांत प्रशासनिक व्यवस्था थी, वहां आज बच्चे सड़क पर हैं, और अफसर फाइलों में।
यदि यह भी सिस्टम को नहीं झकझोरता — तो फिर इंतजार कीजिए अगली पीढ़ी के सवालों का, जिनके जवाब अब तैयार कीजिए।

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