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20 साल में ढह गया करोड़ों का पुल! गोबरी नदी पर भ्रष्टाचार की बुनियाद उजागर

‘लोकार्पण पूर्व मुख्यमंत्री का, निर्माण ठेकेदारों का खेल…!’

20 साल में ढह गया करोड़ों का पुल! गोबरी नदी पर भ्रष्टाचार की बुनियाद उजागर

‘लोकार्पण पूर्व मुख्यमंत्री का, निर्माण ठेकेदारों का खेल…!’

 

सूरजपुर। एक बार फिर सरकारी निर्माण की पोल खुल गई है। सूरजपुर जिले के डुमरिया से गंगोटी और शिवप्रसादनगर को जोड़ने वाले मार्ग पर गोबरी नदी पर बना पुल महज 20 वर्षों में ही जर्जर हो गया है और अब टूटने की कगार पर है। लाखों की लागत से बना यह पुल अब ग्रामीणों के लिए जोखिम और भ्रष्टाचार की पहचान बन चुका है।

यह वही पुल है जिसका लोकार्पण छत्तीसगढ़ के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने किया था और जिसे उस वक्त क्षेत्र की लाइफलाइन बताया गया था। लेकिन 20 साल बाद यह पुल खुद ही सवाल बन गया है, क्या निर्माण में भ्रष्टाचार हुआ? क्या गुणवत्ता के मानकों को ताक पर रख दिया गया?

ग्रामीणों का आक्रोश: ‘घटिया निर्माण का नतीजा है ये पुल’

पुल की हालत इतनी खराब है कि पिलर फट चुके हैं, ढलाई की परतें बरसात में बहकर जा रही हैं, और पुल का पूरा ढांचा धंसने लगा है। क्षेत्र के लोगों का आरोप है कि निर्माण के समय ही घटिया सामग्री का उपयोग हुआ था। शासन-प्रशासन ने कभी इसकी निगरानी नहीं की और अब ग्रामीण भुगत रहे हैं।

जीवन संकट में: 10-15 किलोमीटर का चक्कर, स्कूल-कॉलेज पहुंचना मुश्किल

पुल के क्षतिग्रस्त होने से खुटरापारा, गंगोटी, बाँसापारा, भंवराही और शिवप्रसादनगर जैसे दर्जनों गांवों के लोगों को स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, तहसील और कलेक्ट्रेट जाने में भारी परेशानी हो रही है। NH-43 से यह मार्ग जुड़ता है, जो अब बंद हो गया है। वैकल्पिक मार्गों से उन्हें अब 10 से 15 किलोमीटर का अतिरिक्त सफर करना पड़ रहा है, वह भी कच्ची और फिसलनभरी सड़कों से।

बरसात में खतरा और बढ़ा, ‘कभी भी हो सकता है बड़ा हादसा’

बरसात में पानी का बहाव तेज होता है और पुल की हालत के मद्देनजर यह कभी भी पूरी तरह ढह सकता है। यह न सिर्फ आमजनों के लिए खतरा है बल्कि स्कूली बच्चों और मरीजों के लिए भी बेहद जानलेवा साबित हो सकता है।

ग्रामीणों की मांग: या तो नया पुल बने या तत्काल वैकल्पिक व्यवस्था हो

स्थानीय लोगों की मांग है कि जल्द से जल्द एक वैकल्पिक पुल की व्यवस्था की जाए और पुराने पुल की मरम्मत नहीं, बल्कि नए पुल का निर्माण किया जाए ताकि भविष्य में ऐसी स्थिति दोबारा ना हो।

प्रशासन मौन, सवाल बेआवाज़, जिम्मेदार कौन?

अब सबसे बड़ा सवाल यही है — जब करोड़ों की लागत से बने इस पुल ने 20 साल भी नहीं देखे, तो इसके निर्माण में किसने लापरवाही की? क्या सिर्फ ठेकेदार जिम्मेदार हैं या सरकारी अफसरों की मिलीभगत भी शामिल थी?

इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच और दोषियों पर कार्रवाई की मांग अब जनआंदोलन का रूप लेने लगी है। ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि जल्द कोई कदम नहीं उठाया गया तो वे उग्र आंदोलन के लिए बाध्य होंगे।

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