विशेष बच्चों के स्कूल में “16 जून से लटका ताला, शासन मौन!”
समाज कल्याण विभाग की चुप्पी शर्मनाक, क्या ये भी 'विकास' का हिस्सा है?

विशेष बच्चों के स्कूल में “16 जून से लटका ताला, शासन मौन!”
समाज कल्याण विभाग की चुप्पी शर्मनाक, क्या ये भी ‘विकास’ का हिस्सा है?
बिलासपुर। शासन-प्रशासन की लापरवाही और समाज कल्याण विभाग की बेरुखी एक बार फिर उजागर हो गई है। दृष्टिबाधित बच्चों के लिए संचालित तिफरा स्थित ब्लाइंड स्कूल में 16 जून से अब तक ताला लटका हुआ है, जबकि शासन की ओर से स्पष्ट निर्देश थे कि स्कूल नियत समय पर खोले जाएं। लेकिन यहाँ न तो स्कूल खुला और न ही जिम्मेदार अधिकारी स्थिति स्पष्ट कर रहे हैं।
विद्यालय में पढ़ने वाले मूक-बधिर और दृष्टिबाधित छात्र-छात्राओं का शैक्षणिक भविष्य अधर में लटक गया है। गर्मी की छुट्टियों के बाद स्कूल खुलने की उम्मीद लेकर कई छात्र पालकों के साथ लौटे, लेकिन वहां ताला झूलता मिला। इससे पालकों में आक्रोश है।
आक्रोशित पालकों का कहना है,
“हमने समय पर बच्चों को स्कूल भेजा, लेकिन यहां तो प्रशासनिक अनदेखी का आलम है। कोई बताने वाला नहीं कि स्कूल कब खुलेगा, शिक्षक कब आएंगे, और बच्चों का साल कैसे पूरा होगा?”छत्तीसगढ़ नि:शक्त जन अधिकार सहयोग समिति के प्रदेशाध्यक्ष राधा कृष्ण गोपाल ने इसे शासन की संवेदनहीनता करार देते हुए कहा — “दृष्टिबाधित बच्चों के लिए स्कूल संचालित करने का मकसद ही यह था कि उन्हें मुख्यधारा से जोड़ा जा सके, लेकिन अब वही स्कूल बंद पड़ा है। यह सीधे-सीधे विशेष बच्चों के अधिकारों का हनन है। शासन को जवाब देना चाहिए कि आदेश होने के बावजूद स्कूल क्यों बंद है? और जब यह स्कूल विशेष बच्चों के लिए है तो उसमें और अधिक तत्परता क्यों नहीं बरती जा रही?”
उन्होंने आगे कहा कि अगर शासन-प्रशासन ने शीघ्र संज्ञान नहीं लिया, तो यह मामला बड़े स्तर पर उठाया जाएगा। विशेष बच्चों के अधिकारों को लेकर समिति कानूनी और जन आंदोलन दोनों विकल्पों पर विचार करेगी।
समाज कल्याण विभाग की चुप्पी और स्कूल प्रबंधन की निष्क्रियता इस बात का सबूत है कि विशेष बच्चों की शिक्षा को लेकर कोई ठोस योजना या संवेदनशीलता नहीं है।
अब बड़ा सवाल यह है कि:
क्या इन बच्चों के भविष्य की कोई कीमत नहीं?
शासन के आदेशों की खुलेआम धज्जियां उड़ाना क्या प्रशासनिक अपराध नहीं?
और सबसे बड़ी बात — क्या यह संवेदनहीनता नहीं कि जिन बच्चों को सबसे ज़्यादा सहयोग की जरूरत है, उन्हें सबसे ज़्यादा नज़रअंदाज़ किया जा रहा है?
शासन को तत्काल संज्ञान लेकर स्कूल खोलने की तिथि स्पष्ट करनी चाहिए और दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई सुनिश्चित करनी चाहिए, वरना यह मामला जल्द ही जनआंदोलन का रूप ले सकता है।