एक जिले के चार नियम! युक्तियुक्तकरण में प्रशासनिक ‘कला’ से शिक्षकों का भविष्य दांव पर
युक्तियुक्तकरण में नियमों की अनदेखी, शिक्षकों की न्याय की लड़ाई

एक जिले के चार नियम! युक्तियुक्तकरण में प्रशासनिक ‘कला’ से शिक्षकों का भविष्य दांव पर
युक्तियुक्तकरण में नियमों की अनदेखी, शिक्षकों की न्याय की लड़ाई
“कला संकाय में कलाकारी: कहीं हिंदी शिक्षक बनाकर भेजा, कहीं जिले से बाहर!”
जांजगीर-चांपा। शिक्षा विभाग के युक्तियुक्तकरण में नियमों की जिस तरह की मनमानी सामने आ रही है, उसने शिक्षक संवर्ग को गहरी अस्थिरता में डाल दिया है। जिले के नवागढ़ विकासखंड में कला संकाय के शिक्षकों को उनके मूल संकाय के अनुसार ही सूचीबद्ध किया गया है, वहीं बलौदा, बम्हनीडीह और अकलतरा ब्लॉकों में उसी कला संकाय के शिक्षकों को मनमाने ढंग से ‘हिंदी’ संकाय में डालकर अतिशेष घोषित कर दिया गया है।
विरोध तब और तेज हुआ जब संयुक्त संचालक, शिक्षा संभाग बिलासपुर ने नवागढ़ के शिक्षकों के अभ्यावेदन को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उन्हें उनके स्नातक विषय के आधार पर कला में ही रखा गया है – जबकि बलौदा, बम्हनीडीह और अकलतरा में इसके उलट कार्रवाई की गई। शिक्षकों ने सवाल उठाया है कि एक ही जिले में नियम दो कैसे हो सकते हैं?
इस विसंगति का खामियाजा अब शिक्षकों को भुगतना पड़ रहा है। अनेक शिक्षक, विशेषकर महिला शिक्षक, जिनके छोटे-छोटे बच्चे हैं, उन्हें 30-40 किमी दूर स्कूल आबंटित किए गए हैं। जबकि पुरुष सहायक शिक्षक, जिन्हें भी अतिशेष घोषित किया गया है, वे आज भी अपने पुराने स्कूल में ही ‘मजे से’ सेवा दे रहे हैं।
हाईकोर्ट के आदेश की भी अनदेखी!
अधिक चिंता की बात यह है कि इस मामले में प्रभावित शिक्षकों ने उच्च न्यायालय के आदेश के तहत अभ्यावेदन भी प्रस्तुत किए हैं, लेकिन संबंधित अधिकारी न तो समयसीमा का पालन कर रहे हैं और न ही युक्तियुक्तकरण के नियमों की व्याख्या ईमानदारी से कर रहे हैं। अधिकारी वर्ग केवल एक ही अधिकारी के इशारे पर सामूहिक ‘हां’ में हां मिला रहे हैं, जिससे पूरा प्रशासनिक तंत्र पक्षपातपूर्ण दिखने लगा है।
109 पद खाली, फिर भी बाहर भेजे शिक्षक!
यह स्थिति और अधिक गंभीर हो जाती है जब यह तथ्य सामने आता है कि जिले में ही 109 शिक्षक पद रिक्त हैं। बावजूद इसके, शिक्षकों को जिले से बाहर, विशेषकर मुंगेली जिले में पदस्थ किया गया है। सवाल यह भी है कि क्या प्रशासन का उद्देश्य समस्या का समाधान है या शिक्षकों को दंड देना?
महिला शिक्षकों के साथ दोहरा अन्याय
युक्तियुक्तकरण में महिलाओं को वरीयता देने की नीति भी अब सजा बनती जा रही है। उन्हें दूरस्थ स्कूलों में भेजा जा रहा है जबकि पुरुष शिक्षक अपने गृह क्षेत्र में जमे हुए हैं। इससे महिला शिक्षकों में गहरा आक्रोश है और अब उनके परिजन भी आंदोलन की राह पर हैं।
दोषियों पर कार्रवाई क्यों नहीं?
प्रभावित शिक्षकों का कहना है कि यदि नवागढ़ की सूची सही मानी जाती है, तो बलौदा, बम्हनीडीह और अकलतरा की सूचियां नियमविरुद्ध हैं। ऐसे में वहां के बीईओ के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन विभागीय चुप्पी सब कुछ बयां कर रही है।
शिक्षक स्कूल नहीं, कोर्ट के चक्कर काट रहे
युक्तियुक्तकरण के इस सड़े हुए ढांचे से आज शिक्षक बच्चों को पढ़ाने के बजाय अपने अधिकारों की लड़ाई में कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने को मजबूर हैं।
जिले के शिक्षक संगठनों और प्रभावित शिक्षकों की मांग है कि अतिशेष सूची को निरस्त किया जाए और युक्तियुक्तकरण को पारदर्शिता से लागू किया जाए। साथ ही दोषी अधिकारियों के विरुद्ध तत्काल अनुशासनात्मक कार्रवाई हो।
अब सवाल यह है कि क्या जिला प्रशासन इस गहरी चूक की जिम्मेदारी लेगा या शिक्षकों को अन्याय की आग में झोंकता रहेगा?