प्रधानमंत्री आवास योजना से संवरा प्रतिमा बाई का जीवन
छत टपकने से आत्मसम्मान तक, 'अब घर मुस्कुराता है',

प्रधानमंत्री आवास योजना से संवरा प्रतिमा बाई का जीवन
छत टपकने से आत्मसम्मान तक, ‘अब घर मुस्कुराता है’,
जांजगीर-चांपा| “कभी छत टपकती थी, अब घर मुस्कुराता है”, ग्राम खपरीडीह की श्रीमती प्रतिमा बाई सिदार के चेहरे पर फैली संतोषभरी मुस्कान इस पंक्ति को साकार करती है। एक समय था जब उनकी जिंदगी तंगहाली, असुरक्षा और अभाव के साए में थी, लेकिन आज उनका जीवन प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) के प्रभावशाली क्रियान्वयन का सजीव उदाहरण बन गया है।
60 वर्षीय प्रतिमा बाई, पति स्व. दाताराम सिदार के निधन के बाद भी अपने परिवार की जिम्मेदारी मजबूती से उठाती रहीं। एक बेटा असमय सड़क दुर्घटना में दुनिया छोड़ गया और दूसरा बेटा जम्मू-कश्मीर में मजदूरी कर जैसे-तैसे परिवार को सहारा दे रहा है। तीन बेटियों की शादी उन्होंने अपनी मेहनत और आत्मबल से पूरी की। लेकिन जीवन का सबसे कठिन समय तब था जब बरसात में जर्जर मिट्टी के घर की दीवारें टपकती थीं और विषैले जीवों के डर से रात की नींद हराम हो जाती थी।
संघर्षों से निकलकर जब मिला सहारा
प्रधानमंत्री आवास योजना की स्थायी प्रतीक्षा सूची में नाम आने और पहली किस्त मिलने के बाद प्रतिमा बाई के जीवन की दिशा बदल गई। पूरे परिवार ने मिलकर श्रमदान किया और उनका नया पक्का मकान खड़ा हो गया — यह सिर्फ घर नहीं, बुढ़ापे की सबसे बड़ी सुरक्षा बन गया।
सरकारी योजनाओं का मिला समग्र लाभ
प्रतिमा बाई को प्रधानमंत्री आवास योजना के साथ-साथ अन्य योजनाओं का भी लाभ मिला।
स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालय का निर्माण,
विधवा पेंशन योजना के अंतर्गत नियमित मासिक पेंशन,
महतारी वंदना योजना से ₹1000 की मासिक सहायता,
मनरेगा के तहत 90 दिन की मजदूरी ने उन्हें आत्मनिर्भर बनाया।
घर नहीं, संस्कृति और सम्मान की दीवारें
अपने नवनिर्मित पक्के मकान को उन्होंने पारंपरिक जनजातीय नृत्य, वाद्ययंत्रों और सांस्कृतिक प्रतीकों से सजाया है। यह मकान आज उनके आत्मसम्मान और संस्कृति का प्रतीक बन चुका है।
भावुक होकर कहती हैं प्रतिमा बाई:
“यह घर मेरे लिए सिर्फ ईंट-पत्थर नहीं, एक वरदान है। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री जी ने मुझे सिर पर छत दी, मन में गर्व दिया, मैं तहेदिल से आभार व्यक्त करती हूं।”