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शिक्षकों के युक्तियुक्तकरण में घपला! विधायक ने कमिश्नर जांच को बताया दिशाहीन, सदन में उठाया मुद्दा

युक्तियुक्तकरण में "खेल", शिक्षक हुए शिकार! विधायक बालेश्वर साहू ने सदन में खोली शिक्षा विभाग की परतें

शिक्षकों के युक्तियुक्तकरण में घपला! विधायक ने कमिश्नर जांच को बताया दिशाहीन, सदन में उठाया मुद्दा

 

युक्तियुक्तकरण में “खेल”, शिक्षक हुए शिकार! विधायक बालेश्वर साहू ने सदन में खोली शिक्षा विभाग की परतें

 

सक्ती। सक्ती जिले में शिक्षक युक्तियुक्तकरण प्रक्रिया में गड़बड़ियों को लेकर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। पूरे मामले में अब राजनीति और प्रशासनिक मोर्चे पर भी हलचल तेज हो गई है। जैजैपुर विधायक बालेश्वर साहू ने इस बहुचर्चित मामले में विधानसभा में प्रश्न और ध्यानाकर्षण सूचना के माध्यम से सीधे मुख्यमंत्री, स्कूल शिक्षा मंत्री और सामान्य प्रशासन मंत्री का ध्यान आकर्षित किया है।

विधायक साहू ने कमिश्नर बिलासपुर को प्राप्त शिकायतों पर जांच की धीमी गति और निष्क्रियता को कठघरे में खड़ा करते हुए सदन को अवगत कराया कि अभी तक जांच टीम गठित नहीं की गई है और न ही कोई प्रारंभिक कार्यवाही शुरू हुई है। स्कूल शिक्षा मंत्री द्वारा दिए गए उत्तर में स्पष्ट किया गया है कि इस मामले में केवल दो शिकायतें प्राप्त हुई हैं, जिनमें एक शिकायत जनपद मालखरौदा के पूर्व सभापति की है।

विधायक ने सदन को यह भी बताया कि युक्तियुक्तकरण प्रक्रिया में शासन के निर्देशों की धज्जियां उड़ाई गई हैं। चारों विकासखंडों में अलग-अलग मापदंड अपनाकर शिक्षकों को ‘अतिशेष’ घोषित किया गया, जिसके कारण सैकड़ों शिक्षक जिले से बाहर चले गए, जबकि जिले में पहले से ही शिक्षकों की भारी कमी है।

कई मामलों में खुला फर्जीवाड़े का पर्दाफाश

काउंसलिंग में विषय बंधन नहीं था, फिर भी विषय के आधार पर पदस्थापना की गई।

केरीबंधा और नंदौरकला हायर सेकंडरी में आठ वर्षों से संचालित वाणिज्य संकाय को जबरन बंद कर दिया गया।

रसायनशास्त्र के छह स्कूलों में दो-दो व्याख्याता नियुक्त कर दिए गए, जबकि भौतिक और जीवविज्ञान विषय के कई स्कूल रिक्त रह गए।

चांटीपाली में एक शिक्षक को ज्वाइनिंग दिलवाकर बाद में जेडी के कथित अनुमोदन से उसे कोटेतरा भेज दिया गया, यह शासन की नीति का खुला उल्लंघन है।

अनुमोदन की अधिकारिता जिस अधिकारी के पास नहीं है, उससे अनुमोदन दिखाया गया।

आरोपों में भ्रष्टाचार की गूंज

विधायक ने सदन में यह भी जानकारी दी कि इस पूरी गड़बड़ी की जड़ में अवैध वसूली का बड़ा खेल चल रहा है। चर्चा है कि एक शिक्षक से स्थानांतरण के बदले ₹50,000 तक लिए गए। कई अन्य मामलों में भी इसी तरह की अवैध उगाही की शिकायतें हैं।

प्रशासनिक लापरवाही या मिलीभगत?

प्रभारी डीईओ, जो राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं, पर आरोप है कि उन्होंने इस गंभीर गड़बड़ी को “लिपिकीय त्रुटि” बताकर लगातार दबाने की कोशिश की। शिक्षा स्थायी समिति सक्ती की बैठक में दिनांक 19 जून 2025 को सर्वसम्मति से जांच कराने का प्रस्ताव पारित हुआ, लेकिन आज तक जांच लंबित है।

कमिश्नर जांच पर उठे सवाल

जिस कमिश्नर बिलासपुर के पास यह मामला लंबित है, अब उन्हीं की कार्यशैली पर प्रश्नचिह्न लग रहे हैं। एक ओर तो विधानसभा में मामला रखा गया, वहीं दूसरी ओर अब तक जांच शुरू नहीं होना यह दर्शाता है कि या तो प्रक्रिया को जानबूझकर टाला जा रहा है या फिर उच्च स्तर पर संरक्षण प्राप्त है।

अब देखना यह है कि कमिश्नर बिलासपुर और शासन इस गंभीर मुद्दे पर विधानसभा की गरिमा को ध्यान में रखते हुए क्या त्वरित और ठोस कार्रवाई करते हैं या यह मामला भी फाइलों में धूल खाता रह जाएगा। जनमानस और पीड़ित शिक्षकों की निगाहें सरकार और प्रशासन की अगली चाल पर टिकी हैं।

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