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9 साल से धूल खा रही कैंसर की मशीन, विधायक शेषराज हरबंश का विधानसभा में तीखा सवाल

कैंसर मशीन 9 साल से ‘कोमा’ में! मेकाहारा की दुर्दशा पर गरजे विधायक शेषराज – 'मरीज मर रहे, मशीनें धूल खा रही'

9 साल से धूल खा रही कैंसर की मशीन, विधायक शेषराज हरबंश का विधानसभा में तीखा सवाल

कैंसर मशीन 9 साल से ‘कोमा’ में! मेकाहारा की दुर्दशा पर गरजे विधायक शेषराज – ‘मरीज मर रहे, मशीनें धूल खा रही’

जांजगीर-चांपा: सदन में गूंजा मेकाहारा की मशीनों का मुद्दा, स्वास्थ्य मंत्री को घेरा, खरीदी और मरम्मत पर उठे गंभीर सवाल

राजधानी रायपुर स्थित छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल डॉ. भीमराव अंबेडकर मेमोरियल हॉस्पिटल (मेकाहारा) की वर्षों से बंद पड़ी महंगी मेडिकल मशीनों को लेकर विधानसभा में मंगलवार को जमकर बहस हुई।

पामगढ़ विधायक और कांग्रेस नेता शेषराज हरबंश ने सदन में सीधे सवाल दागते हुए पूछा – “9 साल पहले कैंसर की जांच के लिए मशीन खरीदी गई थी, आज तक चालू क्यों नहीं हो पाई?”

उन्होंने कहा कि अस्पताल में कई महंगी मशीनें एक से अधिक संख्या में वर्षों से ऐसे ही बंद पड़ी हैं, जबकि हजारों मरीज बेहतर जांच और इलाज के लिए हर रोज मेकाहारा की ओर उम्मीद लेकर आते हैं।

इस पर स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने जवाब दिया –

“मेकाहारा में कुल 161 मशीनें हैं, जिनमें से 50 फिलहाल बंद हैं। 11 मशीनों की मरम्मत जारी है और लगभग 70 करोड़ रुपये की नई खरीदी की जा रही है।”

जब शेषराज हरबंश ने विशेष रूप से कैंसर जांच मशीन पर सवाल किया तो मंत्री ने जवाब दिया –

“यह मशीन जांच की नहीं, इलाज की श्रेणी में आती है। इसे विदेश से लाया गया है और हम उसे जल्द चालू करेंगे।”

लेकिन असली बम विधायक शेषराज ने इसके बाद फोड़ा। उन्होंने दो टूक कहा —

“मशीन आपकी ही सरकार में 9 साल पहले खरीदी गई थी, अब तक चालू क्यों नहीं हो पाई? 5 साल तक हमारी सरकार रही, लेकिन आपकी सरकार ने भी इसे धूल फांकने के लिए ही छोड़ दिया?”

मंत्री जायसवाल ने सफाई दी कि मशीन की खरीदी पूर्व मंत्री के नेतृत्व में अच्छी सोच के साथ की गई थी, लेकिन तकनीकी कारणों से चालू नहीं हो सकी, अब चालू करवाने की प्रक्रिया चल रही है।

सवाल जो अभी बाकी हैं…

आखिर मशीनें बंद रहने की जिम्मेदारी किसकी?

क्या करोड़ों की पब्लिक मनी यूं ही बर्बाद होती रहेगी?

क्या मरीजों की जिंदगी पर सरकारी लापरवाही भारी पड़ेगी?

सदन में भले ही जवाब दिए गए हों, लेकिन मेकाहारा में धूल खा रही करोड़ों की मशीनें आज भी कई सवालों के साथ खड़ी हैं। जब प्रदेश की सबसे बड़ी सरकारी मेडिकल संस्था में इलाज की ये हालत है, तो प्रदेशभर के आम अस्पतालों की स्थिति का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं।

अब जनता पूछ रही है —

“मशीन खरीदी थी इलाज के लिए या सालों तक जवाब देने के लिए?”

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