एक हाथ से केक, दूसरे से लाठी: उपमुख्यमंत्री की ‘दिव्यांग संवेदना’ की दो तस्वीरें!
विजय शर्मा का ‘संवेदना शो’ बनाम ‘संवेदना शून्यता’

एक हाथ से केक, दूसरे से लाठी: उपमुख्यमंत्री की ‘दिव्यांग संवेदना’ की दो तस्वीरें!
रायपुर/कवर्धा। छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने अपने जन्मदिन पर दृष्टि एवं श्रवण बाधित बच्चों के साथ मिलकर केक काटा, मिठाइयाँ बांटी, सेल्फी ली और “संवेदनशीलता” का सार्वजनिक प्रदर्शन किया। पर वहीं, राजधानी रायपुर में उन्हीं के गृहविभाग की पुलिस ने दिव्यांगजनों को घसीटा, पीटा, अपमानित किया और यहां तक कि दो के हाथ तोड़ डाले। सवाल ये उठता है — असली विजय शर्मा कौन हैं? वो जो कैमरे के सामने फूल बरसाते हैं, या वो जिनके इशारे पर लाठियाँ चलती हैं?
एक ओर कवर्धा के मंच पर उपमुख्यमंत्री दिव्यांग बच्चों के बीच बैठकर मानवीयता का संदेश दे रहे थे, तो दूसरी ओर रायपुर में उसी सरकार के दिव्यांगजनों को सरेआम गाड़ियों में भरकर घसीटा जा रहा था। कुछ महिला दिव्यांगों के कपड़े तक फाड़े गए, मोबाइल तोड़े गए, और मुंगेली निवासी एक दिव्यांग का हाथ तक टूट गया।
विजय शर्मा का ‘संवेदना शो’ बनाम ‘संवेदना शून्यता’
सवाल ये भी है कि क्या संवेदनशीलता केवल केक काटने तक सीमित रह गई है? विधानसभा के बाहर शांतिपूर्वक बैठे दिव्यांगों को पुलिस ने किसके आदेश पर घसीटा? क्या विजय शर्मा केवल ‘दृश्य और श्रवण बाधित’ बच्चों को ही मानवीयता के पात्र मानते हैं, और जिन दिव्यांगों की आवाज सरकार तक पहुँचना चाहती है, उन्हें पुलिस की लाठी से चुप कराना ही ‘व्यवस्था’ है?
“जन्मदिन पर मुस्कानें, लेकिन आंदोलन पर टूटते हाथ!”
छत्तीसगढ़ दिव्यांग सेवा संघ ने आरोप लगाया है कि दिव्यांगों की मांगों को सरकार बार-बार नजरअंदाज कर रही है। कई बार आश्वासन देने के बावजूद बैकलॉग पदों पर भर्ती, पेंशन में बढ़ोत्तरी, प्रमोशन में आरक्षण जैसी बुनियादी मांगें लंबित हैं। इस बार जब दिव्यांगजन विधानसभा तक अपनी आवाज ले जाने पहुँचे तो उपमुख्यमंत्री के गृहविभाग की पुलिस ने उन्हें खींच-खींचकर गाड़ियों में डाला, जैसे वे नागरिक नहीं, अपराधी हों।
क्या संवेदनशीलता कैमरे के सामने ही जीवित रहती है?
विजय शर्मा ने जन्मदिन पर कहा कि “हर वर्ग तक खुशियाँ पहुँचाना ही एक जनप्रतिनिधि का धर्म है।” लेकिन क्या यह धर्म रायपुर में घसीटे गए दिव्यांगों के लिए नहीं था? क्या संवेदनशीलता का मतलब सिर्फ शैक्षणिक सामग्री बाँटना और फोटो खिंचवाना है?
अब जनता और दिव्यांगजन ये पूछ रहे हैं – क्या विजय शर्मा केक काटते वक्त संवेदनशील होते हैं, या आदेश देते वक्त क्रूर? और क्या सरकार संवेदना की असल परीक्षा केवल फूलों और मिठाइयों में ही देखती है, ना कि लाठी खाए हुए हाथों में?