
फर्जी मार्कशीट से नौकरी: शिक्षक बर्खास्त, लेकिन अधिकारियों की चुप्पी शर्मनाक!
बच्चों का भविष्य फर्जी शिक्षकों के हवाले, डीईओ ने अब तक प्राथमिकी तक दर्ज नहीं करवाई…
जांजगीर-चांपा। शिक्षा का मंदिर कहलाने वाले स्कूलों में फर्जी मार्कशीट के सहारे नौकरी करने वाले शिक्षकों का पर्दाफाश हुआ है। नवागढ़ ब्लॉक के बेल्हा और करमंदी प्राथमिक शाला में पदस्थ सहायक शिक्षक जनकराम चौहान और सुभाष कुमार साहू को जांच में फर्जी पाया गया और सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।
लेकिन असली सवाल यह है कि जिला शिक्षा अधिकारी और नियुक्ति के समय जिम्मेदार अफसर अब तक क्यों खामोश हैं? क्या फर्जीवाड़े को दबाने और दोषियों को बचाने की कोशिश हो रही है?
किस तरह हुआ फर्जीवाड़ा
जनकराम चौहान ने 2003 में किसी अन्य छात्र की अंकसूची का इस्तेमाल कर शिक्षक की नौकरी हथिया ली।
सुभाष कुमार साहू ने अपनी 12वीं की अंकसूची में अंकों की हेराफेरी कर 293 अंक को 370 दिखाया और शिक्षाकर्मी वर्ग-3 के पद पर चयनित हो गए।
जांच में दोनों की करतूतें साफ हो गईं और डीईओ ने आदेश जारी कर सेवा से मुक्त कर दिया।
पर सवाल अब भी बरकरार
जब फर्जीवाड़ा साबित हो चुका, तो अब तक थाने में प्राथमिकी क्यों दर्ज नहीं की गई?
क्या डीईओ और विभागीय अफसरों की मिलीभगत से यह खेल इतना लंबे समय तक चलता रहा?
सिर्फ नौकरी से बर्खास्तगी से क्या सरकार और विभाग अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाएंगे?
जनता और विद्यार्थियों की आवाज
इस मामले ने पूरे जिले की जनता और विद्यार्थियों को झकझोर दिया है। सवाल उठ रहा है कि—
जिन बच्चों को सही शिक्षा मिलनी चाहिए थी, उन्हें सालों तक फर्जी शिक्षकों के हवाले क्यों किया गया?
क्या इन फर्जी शिक्षकों की वजह से बच्चों का भविष्य अंधकार में नहीं धकेला गया?
और क्या केवल बर्खास्तगी काफी है या अब कड़ी कानूनी कार्रवाई होगी?
विद्यार्थियों के अभिभावकों का कहना है कि यदि सामान्य लोग छोटे-से-छोटे अपराध में जेल भेजे जा सकते हैं, तो सरकारी नौकरी में फर्जी दस्तावेज लगाने वालों पर अब तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
यह मामला साफ करता है कि यदि समाज और जागरूक नागरिक आवाज न उठाएं तो अधिकारी ऐसे मामलों को ठंडे बस्ते में डाल देते हैं। इसलिए अब जनता और अभिभावकों को संगठित होकर जिला प्रशासन से मांग करनी होगी कि—
दोनों फर्जी शिक्षकों के साथ-साथ नियुक्ति करने वाले अधिकारियों पर भी आपराधिक मामला दर्ज हो।
पूरे जिले में शिक्षकों की नियुक्तियों की दोबारा जांच हो।
शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर जनता की निगरानी बढ़ाई जाए।
क्योंकि सवाल सिर्फ दो फर्जी शिक्षकों का नहीं है, सवाल आने वाली पीढ़ी की शिक्षा और भविष्य का है।




