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भक्ति के नाम पर ‘लालच की लॉटरी’ : प्रतिबंध कब का, पर पंडालों में धंधा जारी!

शासन-प्रशासन की चुप्पी से पंडाल समितियों के हौसले बुलंद

भक्ति के नाम पर ‘लालच की लॉटरी’ : प्रतिबंध कब का, पर पंडालों में धंधा जारी!

शासन-प्रशासन की चुप्पी से पंडाल समितियों के हौसले बुलंद

रायपुर। आस्था के पर्व नवरात्रि में जहां माँ दुर्गा की भक्ति होनी चाहिए, वहीं कई पंडालों में “लालच की लॉटरी” का खेल जारी है। सहयोग राशि के नाम पर टिकट, और टिकट के नाम पर इनाम का झांसा… यही वह मायाजाल है जिसमें भोले-भाले लोग फंसते हैं और धीरे-धीरे बर्बादी की राह पकड़ लेते हैं।

छत्तीसगढ़ शासन ने लॉटरी को काफी समय पहले ही प्रतिबंधित कर दिया था। वजह साफ थी—क्योंकि इस लॉटरी के लालच में अनगिनत लोग कर्ज में डूबे, घर उजड़े और न जाने कितने परिवार तबाह हो गए। लेकिन अफसोस! वही प्रतिबंधित लॉटरी अब खुलेआम दुर्गा पंडालों और इससे पहले गणेश पंडालों में भी धड़ल्ले से चल रही है।

सरकार ने जनता को लॉटरी से बचाने का दावा किया था, लेकिन लगता है प्रशासन का यह प्रतिबंध सिर्फ सरकारी फाइलों और आदेशों की शोभा बढ़ाने के लिए था। पंडालों में चंदे की लॉटरी पर शासन की खामोशी देखकर यही लगता है मानो सरकार कह रही हो—“भक्ति में ढोल बजाइए, और साथ में लालच का खेल भी खेल जाइए!”

बड़े-बड़े इनामों के लालच में लोग कतार में खड़े हैं। कोई कार, तो कोई मोटरसाइकिल जीतने का सपना देख रहा है, तो कोई मोबाइल या फ्रिज। लेकिन सवाल यह है कि आस्था के पंडालों में लालच की दुकान क्यों सज रही है?

क्या शासन-प्रशासन इस “अघोषित जुए” को रोकने के लिए फिर से किसी हादसे या सामाजिक बर्बादी का इंतजार कर रहा है?

यदि समय रहते कार्रवाई नहीं हुई तो यह “भक्ति की आड़ में बर्बादी का कारोबार” आने वाले कल में बड़ा संकट खड़ा करेगा।

भक्ति कीजिए, श्रद्धा रखिए, आस्था मनाइए, लेकिन लालच की लॉटरी में जनता को फंसाना न केवल अपराध है बल्कि आस्था का अपमान भी है।

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