
टीआई–चेले की दोस्ती या साझेदारी ?
थाने के भीतर से खुला खेल… आरोपी पक्ष से मेल–मिलाप कर मोटी वसूली !
जांजगीर-चाम्पा। जिला मुख्यालय की सिटी कोतवाली इन दिनों पुलिसिंग से ज्यादा “अंदरखाने चल रही सांठगांठ” के लिए सुर्खियों में है। आरोप है कि थाना प्रभारी और उनका एक खास आरक्षक मिलकर एक ऐसी अनौपचारिक व्यवस्था चला रहे हैं, जिसके तहत पुलिस कार्रवाई से पहले रकम पर “डील” तय होती है। बताया जा रहा है कि आरोपी को जेल भेजना है या थाने में ही मामला निपटाना है — यह सब फैसला केस की कानूनी प्रक्रिया नहीं, बल्कि “गुप्त वसूली तंत्र” तय करता है।
सूत्रों के अनुसार टीआई जिस भी थाने पर पदस्थ होते हैं, उनके साथ हमेशा वही आरक्षक भी तैनात हो जाता है, मानो उसकी अलग से अनुमति ही हो। थाना के अंदर यह चर्चाएं आम हैं कि यही “चेले” आरक्षक हर मामले में टीआई का दायाँ हाथ नहीं बल्कि “वसूली का सेटर” बन चुका है।
कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज होते ही सबसे पहले यह आरक्षक सक्रिय हो जाता है। बताया जा रहा है कि FIR के बाद की पूरी ‘फॉलोअप कार्रवाई’ इसके जिम्मे रहती है। आरोप है कि आरोपी पक्ष को पहले जेल और कठोर कार्रवाई की धमकी दी जाती है, फिर उसी भय का इस्तेमाल रकम वसूलने के लिए हथियार की तरह किया जाता है। कई मामलों में बड़ी रकम लेकर जेल न भेजकर मामला थाना स्तर पर ही दबा दिए जाने के आरोप गंभीर रूप से सामने आ रहे हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि थाने के भीतर 2 से 3 लोगों का “गुट” बन गया है, जो असल में पुलिसिंग नहीं बल्कि सौदेबाजी का नेटवर्क चला रहा है। सिर्फ आरोपी नहीं, पीड़ित पक्ष से भी कार्रवाई के नाम पर पैसों की मांग की जा रही है। इससे ईमानदार व कर्तव्यनिष्ठ पुलिसकर्मियों की छवि भी कलंकित हो रही है।
गंभीर आरोप यह भी है कि उक्त आरक्षक खुद को एक प्रमुख समाज से जुड़े होने का लाभ उठाता है। जिले में उस समाज की संख्या हजारों में है और कई पदस्थ अधिकारी भी उसी समाज से ताल्लुक रखते हैं, जिस कारण वह खुलकर दबदबा बनाए हुए है। आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में भी उसके पारिवारिक व जातीय प्रभाव को वसूली संरक्षण कवच की तरह इस्तेमाल करने की चर्चाएं हैं।
सरकारी वाहन और बत्ती ‘प्रभावी उपकरण’
आरोप है कि यह आरक्षक टीआई के आदेश/सहयोग से सरकारी वाहन का बेहिचक उपयोग करता है। उस वाहन पर लगी नीली बत्ती को “अवैध दबाव” जमाने के औजार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। थाना क्षेत्र में जहां कहीं समझौता कराने जाना होता है, वहीं यह वाहन और नीली बत्ती दिखाकर “दबंग पुलिस” की छवि बनाई जाती है ताकि सामने वाला डरकर रकम दे दे।
यह पूरा घटनाक्रम उच्च अधिकारियों से छुपा हुआ नहीं माना जा रहा है, लेकिन अब तक वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने किसी भी प्रकार की आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। जनता अब सवाल उठा रही है कि थाना स्तर पर चल रहे इस अनौपचारिक वसूली तंत्र की जांच क्यों नहीं कराई जा रही? यदि निष्पक्ष जांच हो तो कई चौकाने वाले नाम और स्तर सामने आ सकते हैं।




